भ्रामरी प्राणायाम करते समय एक गूँज या आवाज Humming sound की जाती है जो भ्रामरी नामक मक्खी के उड़ते समय होने वाली आवाज जैसी होती है। इसल...
भ्रामरी प्राणायाम करते समय एक गूँज या आवाज Humming sound की जाती है जो भ्रामरी नामक मक्खी के उड़ते समय होने वाली आवाज जैसी होती है। इसलिए इसे भ्रामरी Bhramari प्राणायाम कहा जाता है।
भ्रामरी प्राणायाम करना बहुत आसान है और यह किसी भी उम्र में तथा घर या बाहर कहीं भी किया जा सकता है।
भ्रामरी प्राणायाम करने से मानसिक थकान और तनाव दूर होता है। मन की अशांति , चिंता , निराशा , गुस्सा आदि भावनाएँ शांत होती हैं। इसे करने से सिर के सभी अंगों जैसे कान , नाक , मुंह और आँख व मस्तिष्क पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।
भ्रामरी प्राणायाम करने का तरीका – Bhramari
आसन बिछाकर पद्मासन , सुखासन ( पालथी ) या वज्रासन में बैठ जाएँ। पीठ , गर्दन और सिर एक सीध में रखें।
मुंह बंद रखें , जबड़ा थोड़ा ढीला छोड़े। जीभ के सिरे को ऊपर वाले दातों के पीछे लगायें।
कान अंगूठों से बंद करें , दबाव ना डालें।
आँख बंद कर लें। मध्यमा और अनामिका अंगुली को पलकों के ऊपर हलके से रखें , तर्जनी को भोहों से ऊपर रखें।
नाक से गहरी साँस अन्दर भरें। मुंह बंद रखें।
अब मुँह बंद किये हुए ही नीचे सुर में गले से ॐ ( hmmm ) की आवाज करें। धीरे धीरे पूरी साँस बाहर निकल जाएगी।
कोशिश करें कि आवाज मधुर , कोमल और लगातार आये। कर्कश ध्वनी नही निकले।
आपको गर्दन के ऊपरी हिस्सों में कम्पन महसूस होगा। खासकर सिर , जबड़े , गाल और कान में।
दुसरे व्यक्ति को मधु मक्खी के भिनभिनाने जैसी आवाज सुनाई देगी।
जीभ की स्थिति सही होने से ॐ की आवाज पूरे सिर में सही तरीके से गूँजती है जो मष्तिष्क पर अच्छा प्रभाव डालती है। अपना ध्यान भोहों के बीच स्थित रखें। यहाँ आज्ञा चक्र Ajna chakra होता है।
फिर से नाक से गहरी साँस अन्दर भरें और ध्वनी करते हुए पूरी साँस बाहर निकल जाने दें। ये दो चक्र हुए।
शुरू में ऐसे चक्र तीन बार , फिर अगले सप्ताह पांच बार इसके बाद वाले सप्ताह में सात बार तक कर सकते हैं।
यह शुरूआती अभ्यास है। अगली अवस्था में कुम्भक ( साँस रोकना ) और बंध के साथ भ्रामरी की जाती है। इन्हें अनुभवी गुरु से सीखकर ही करना चाहिए।
भ्रामरी प्राणायाम के फायदे – Bhramari Benefits
ध्यान केंदित करने की शक्ति , एकाग्रता तथा स्मरण शक्ति बढ़ती है।
मानसिक तनाव दूर होता है। टेंशन , गुस्सा और चिंता दूर होते हैं।
इनसोम्निया या नींद नहीं आना आदि दिक्कत दूर होती है।
पीनियल ग्रंथि और पिट्यूटरी ग्रंथि को उद्वेलित करता है और उनकी उचित कार्यविधि में सहायक होता है।
ब्लड प्रेशर बढ़ा हुआ हो तो कम होता है।
ह्रदय रोग में लाभ पहुँचता है।
माइग्रेन , नाक सम्बन्धी एलर्जी तथा सिरदर्द आदि में आराम मिलता है।
अल्जाइमर रोग में लाभ होता है।
आत्मविश्वास में बढ़ोतरी होती है।
गले को ताकत देता है , आवाज को सुधारता है।
थायरॉइड से ग्रस्त लोगों को इस प्राणायाम से लाभ होता है।
भ्रामरी करते समय क्या ध्यान रखें – Bhramari Tips
कान को बंद करने के लिए ज्यादा दबाव ना डालें। ना ही अंगूठा कान के अन्दर घुसाने की कोशिश करें। सिर्फ कान को बाहर से ढ़क दें। अंगूठे के नाख़ून बढ़े हुए हो तो काट लें।
आँखों पर भी दबाव ना डालें पलकों पर अंगुलियां सिर्फ रखें।
भ्रामरी प्राणायाम में साँस लेते समय या ध्वनि करते समय मुंह तथा आखें बंद रखें।
शुरू में 3 या 5 से ज्यादा बार ना करें।
यदि किसी प्रकार की समस्या होती महसूस हो तो अनुभवी गुरु से सीख कर ही इसे करें।
यदि ब्लड प्रेशर , थायरॉइड की या अन्य कोई दवा चल रही ही तो बिना डॉक्टर की सलाह के उसे बंद ना करें।
भ्रामरी प्राणायाम को अनुलोम विलोम के बाद करना ठीक रहता है। पर इनके बीच में सामान्य साँस लेकर थोड़ा विश्राम ले लेना चाहिए।
प्राणायाम हमेशा खाली पेट सुबह के समय करना ठीक होता है।
प्राणायाम खुली हवा में करें।
महिलाओं को गर्भावस्था तथा माहवारी के समय भ्रामरी प्राणायाम नही करना चाहिए।
यदि ब्लड प्रेशर ज्यादा बढ़ा हुआ हो , मिर्गी से पीड़ित हों , छाती में दर्द हो या कान में संक्रमण हो तो भ्रामरी प्राणायाम नहीं करना चाहिए।
लेट कर भ्रामरी नहीं करना चाहिए।