फाइब्रोइड Fibroid महिला के गर्भाशय में होने वाली गांठ को कहते है। सामान्य भाषा में इसे बच्चेदानी की गांठ Bachchedani me gath भी कहा जा...
फाइब्रोइड Fibroid महिला के गर्भाशय में होने वाली गांठ को कहते है। सामान्य भाषा में इसे बच्चेदानी की गांठ Bachchedani me gath भी कहा जाता है। फाइब्रोइड का आकार मूंग जितना छोटा भी हो सकता है या खरबूजे जितना बड़ा भी।
ये क्यों होते हैं इसका बहुत स्पष्ट कारण पता नहीं है। कुछ बातों का फाइब्रॉइड होने से सम्बन्ध हो सकता है। जैसे हार्मोन का प्रभाव और अनुवांशिकता यानि परिवार में किसी को यह हो।
महिलाओं में फाइब्रोइड की समस्या बहुत कॉमन है। अधिकतर 35 से 50 वर्ष की उम्र में यह परेशानी सामने आती है। 99 % ये बिनाइन यानि बिना कैंसर वाली होती है अतः बहुत घबराने जैसी बात नहीं होती।
गर्भाशय में होने वाले फाइब्रॉइड गर्भाशय के अंदर , गर्भाशय की दीवार में या इसके बाहर भी हो सकते है। फाइब्रॉइड का आकार ज्यादा बढ़ जाता है तो पेट में दर्द और माहवारी में अत्यधिक रक्तस्राव होने लगता है। किसी किसी को फाइब्रॉइड होते हुए भी किसी प्रकार की कोई तकलीफ नहीं होती है।
फाइब्रोइड होने के कारण – Cause of Fibroid
हार्मोन
इस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोन नामक हार्मोन ओवरी में बनते है। हार्मोन के कारण हर महीने गर्भाशय में एक परत बनती है।जिसके कारण माहवारी होती है। ये हार्मोन ही इन परत के बनने के दौरान फाइब्रॉइड बनने की वजह भी बनते है।
अनुवांशिकता पारिवारिक कारण
यदि दादी , नानी , माँ या बहन को फाइब्रॉइड की समस्या है तो आपको भी यह होने की पूरी संभावना होती है।
गर्भावस्था
गर्भावस्था के समय एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोन हार्मोन्स का स्राव बढ़ जाता है। इसलिए ऐसे समय फाइब्रॉइड होने संभावना भी बढ़ जाती है।
मोटापा
वजन ज्यादा होने की वजह से भी गर्भाशय में फाइब्रॉइड बनने की संभावना बढ़ जाती है। इसका कारण गलत प्रकार का खान-पान ,शारीरिक गतिविधि का अभाव तथा गलत प्रकार की दिनचर्या भी हो सकता है।
फाइब्रोइड के लक्षण – Fibroid Symptoms
फाइब्रॉइड होने के कारण जो लक्षण प्रकट होते है वो इस बात पर निर्भर करते है की ये किस जगह स्थित है , इनका आकार कैसा है और इनकी संख्या कितनी है।
यदि फाइब्रॉइड बहुत छोटे हों और कम हों तो किसी प्रकार की तकलीफ नहीं होती और मेनोपॉज होने के बाद या अपने आप सिकुड़ कर मिट जाते है। लेकिन यदि फाइब्रोइड बढ़ जाते है ये परेशानियाँ पैदा हो सकती है –
— माहवारी के समय या बीच में ज्यादा रक्तस्राव जिसमे थक्के शामिल होते है।
— नाभि के नीचे पेट में दर्द या पीठ के निचले हिस्से में दर्द।
— पेशाब बार बार आना।
— मासिक धर्म के समय दर्द की लहर चलना।
— यौन सम्बन्ध बनाते समय दर्द होना।
— मासिक धर्म का सामान्य से अधिक दिनों तक चलना।
— नाभि के नीचे पेट में दबाव या भारीपन महसूस होना।
— एनीमिया।
— कब्ज।
— पैरों में दर्द।
— पेट में सूजन।
— सम्भोग के समय दबाव महसूस होना।
फाइब्रॉइड का पता कैसे चलता है
Fibroid he ya nahi kaise jane
यदि उपरोक्त लक्षण दिखाई दें तो महिला चिकित्सक से जाँच करानी चाहिए। जाँच करने के बाद यदि उन्हें गर्भाशय में गांठ यानि फाइब्रॉइड होने का शक हो डॉक्टर सोनोग्राफी कराने के लिए कह सकते है।
सोनोग्राफी से गर्भाशय की सही स्थिति का पता चलता है। कहाँ, कितनी संख्या और कितने बड़े फायब्रॉयड है इसका भी पता चल जाता है।
सोनोग्राफी दो तरह से होती है – पहली सामान्य प्रकार से पेट के ऊपर से और दूसरी योनी के अंदर से जिसे ट्रांसवेजिनल अल्ट्रासॉउन्ड कहते है । योनि के अंदर से सोनोग्राफी होने पर फाइब्रॉइड की स्थिति का ज्यादा स्पष्ट रूप से पता चलता है। क्योंकि उसमे मशीन गर्भाशय के ज्यादा पास तक पहुँच पाती है।
डॉक्टर के बताये अनुसार सोनोग्राफी कराने से किस प्रकार का इलाज होना चाहिए यह पता चलता है। इसके अलावा एम आर आई , एक्सरे या सीटी स्केन की जरुरत के अनुसार कराने की सलाह दी जा सकती है।
फाइब्रोइड से नुकसान – Effects of fibroid
फाइब्रॉइड से वैसे तो नुकसान नहीं होता लेकिन कुछ मामलों में इनके कारण गंभीर समस्या पैदा हो सकती है। जो इस प्रकार है –
— बहुत ज्यादा रक्त स्राव होने के कारण शरीर में खून की कमी हो सकती है।
— पेट में दर्द और सूजन के कारण बहुत परेशानी हो सकती है।
— कब्ज हो सकती है।
— पोटी यानि मलत्याग के समय दर्द महसूस हो सकता है।
— समय से पहले डिलीवरी , गर्भपात या डिलीवरी के समय समस्या हो सकती है।
— फाइब्रॉइड के कारण गर्भाशय की दीवार का आकार बिगड़ने के कारण बच्चा ठहरने में परेशानी हो सकती है।
— बहुत ही कम मामलों में फाइब्रॉइड में कैंसर हो सकता है।
फाइब्रोइड का इलाज – Fibroid Treatment
यदि फाइब्रोइड के कारण किसी प्रकार की तकलीफ ना हो तो सामान्यतः किसी प्रकार के इलाज की आवश्यकता नहीं होती है। यहाँ तक की थोड़ा बहुत अधिक रक्तस्राव की स्थिति से निपट सकें तो कोई इलाज ना लें तो चलता है।
मेनोपॉज होने के बाद इसके कारण हो रही तकलीफ कम हो जाती है या कभी कभी बिल्कुल मिट भी जाती है। लेकिन यदि तकलीफ ज्यादा होती है तो इलाज लेना जरुरी हो जाता है।
फायब्रॉइड का इलाज उम्र , शारीरिक स्थिति , फाइब्रॉइड का आकार , उनकी संख्या और उनकी स्थिति के अनुसार तय किया जाता है। हो सकता है कुछ दवाओं से फाइब्रॉइड ठीक हो जाएँ अन्यथा ऑपरेशन की जरुरत भी पड़ सकती है।
आपरेशन कई प्रकार से होते है। जिसमे मशीनों की सहायता से फाइब्रॉइड को बिना किसी चीर फाड़ के लेजर से नष्ट किया जाता है।
यदि इसके द्वारा इलाज संभव नहीं हो तो गर्भाशय को निकाल देना पड़ता है। उस स्थिति में माँ बनने की संभावना समाप्त हो जाती है। इस आपरेशन में ओवरी निकाल देनी है या नहीं यह डॉक्टर मरीज की परिस्थिति और जरुरत को देखते हुए निर्णय लेते है।
फाइब्रोइड होने पर डॉक्टर से इस प्रकार के प्रश्न किये जा सकते है। इनके जवाब समझने पर यह निर्णय करना आसान होता है कि अब क्या करना चाहिए। दवा लें या सर्जरी करायें।
— कितने फाइब्रोइड है ?
— फाइब्रोइड का साइज़ कितना है ?
— फाइब्रोइड किस जगह है ?
— फाइब्रोइड के बड़े होने की कितनी संभावना है ?
— फाइब्रोइड के साइज़ में कितना बदलाव आया है ?
— अगर फाइब्रोइड बड़ा हो रहा हो तो कैसे पता चलेगा ?
— फाइब्रोइड से किस प्रकार की परेशानी हो सकती है ?
— फाइब्रोइड के आकार पर नजर रखने के लिए कौनसे टेस्ट कराने चाहिए ?
— अगर परेशानी बढ़ती है तो क्या इलाज होगा ?
— क्या आपरेशन में ओवरी भी निकालनी पड़ेगी ?
यदि पूरी तरह संतुष्ट नहीं हो पाओ तो किसी अन्य डॉक्टर की राय भी ली जा सकती है। ताकि निर्णय लेना आसान हो जाये।
यदि गर्भाशय में मौजूद गांठ या रसौली प्रारंभिक अवस्था में हो या छोटी हों तो आयुर्वेदिक दवाओं से या होमिओपेथिक दवाओं से इन्हें ठीक करने की कोशिश की जा सकती है। ज्यादा बड़े फाइब्रॉइड होने पर और ब्लीडिंग अधिक होने पर सर्जरी जरुरी हो जाती है।
सर्जरी के बाद महीने डेढ़ महीने कुछ परहेज रखने की जरुरत होती है। सर्जरी के बाद सभी तरह की परेशानियों से मुक्ति मिल जाती है। अधिकतर महिलाएं सर्जरी के बाद बहुत खुश नजर आती है।