तेल बाजार में कई प्रकार के उपलब्ध हैं। जैसे मूंगफली , सोयाबीन , सूरजमुखी , जैतून , सरसों , तिल , राइस ब्रान आदि। उसमे भी फिल्टर्ड और...
तेल बाजार में कई प्रकार के उपलब्ध हैं। जैसे मूंगफली , सोयाबीन , सूरजमुखी , जैतून , सरसों , तिल , राइस ब्रान आदि। उसमे भी फिल्टर्ड और रिफाइंड टाइप के तेल होते है। बड़ी दुविधा रहती है कौनसा तेल खाना बनाने में यूज़ करना चाहिए।
सब्जी कौनसे तेल में बनायें , तलने का तेल कौनसा लें । पराठे किस तेल से बनायें। किसे बेस्ट फूड ऑइल Best food oil कहेंगे।
तेल और घी का उपयोग बहुत जरुरी होता है। ये सिर्फ स्वाद नहीं बढ़ाते , इनसे एनर्जी मिलती है। कई प्रकार के विटामिन फैट में घुलकर ही शरीर मे पहुँचते है। फैट मे घुलनशील विटामिन A , विटामिन D , विटामिन E , विटामिन K आदि के अवशोषण के लिए तेल या घी आवश्यक होता है।
फैट की मदद से ही प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट की ऊर्जा शरीर को मिलती है। ये पाचन में भी मदद करते है। शरीर के तापमान को बनाये रखने में भी इनकी भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है अतः तेल और घी बंद नहीं किये जा सकते।
ये भी पता होता है कि अधिक घी तेल नुकसान करते है , इसलिए परिवार की सेहत की चिंता भी बनी रहती है।
कुछ परिवारो में वर्षो तक एक ही प्रकार का तेल हर काम में प्रयोग किया जाता है। चाहे तलने का तेल हो या सब्जी बनाने का या तवे पर सिकाई का तेल । क्या यह उचित होता है ? क्या तेल बदलना चाहिए ? आइये देखें।
रिफाइंड तेल और फिल्टर्ड तेल का अंतर
Refined oil or filtered oil me kya fark he
रिफाइण्ड तेल प्रोसेस किया हुआ तेल होता है। इसमें तेल में कई प्रकार के ब्लीच और केमिकल डाले जाते है। इससे तेल के वास्तविक गुण खत्म हो जाते है। तेल का रंग , स्वाद और खुशबू चले जाते है।
इसके साथ ही तेल में लाभदायक तत्व भी कम हो जाते है। विशेष कर बीटा केरोटीन और विटामिन E की कमी हो जाती है। लेकिन इससे बना खाना ओरिजिनल टेस्ट देता है।
फिल्टर्ड तेल में पोषक तत्व अधिक होते है। फिल्टर्ड तेल के स्ट्रॉन्ग स्वाद और खुशबु के कारण खाने का ओरिजिनल टेस्ट दब जाता है। फिल्टर्ड तेल की शेल्फ लाइफ रिफाइण्ड की अपेक्षा कम होती है। फ़िल्टर तेल से किसी किसी को एलर्जी हो सकती है।
लेकिन फिर भी पोषक तत्व अधिक होने के कारण फिल्टर्ड तेल लेना ज्यादा अच्छा होता है।
तलने का तेल कौनसा अच्छा – Talne Ka Tel Konsa Le
तेल और घी में फैटी एसिड होते है। इनमे से कुछ फायदेमंद होते है और कुछ नुकसान देह होते है। ये फैटी एसिड चार प्रकार के होते है।
सैचुरेटेड फैटी एसिड ( SFA )
मोनो अनसैचुरेटेड फैट ( MUFA )
पॉली अनसैचुरेटेड फैट ( PUFA )
ट्रांस फैटी एसिड ( TFA )
हमारे लिए वह तेल अच्छा होता है जिसमे SFA कम हो तथा MUFA और PUFA अधिक हो । सैचुरेटेड फैट और ट्रांस फैट नुकसान अधिक करते है। इनके कारण दिल की बीमारी होने की सम्भावना बढ़ जाती है। इनसे रक्त में LDL कोलेस्ट्रॉल बढ़ जाता है जो नुकसान करता है । ये धमनियों को अवरुद्ध कर सकते है अतः ये तेल में कम होने चाहिए।
अनसैचुरेटेड फैट शरीर के लिए फायदेमंद होते है। ये HDL कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाने में सहायक होते है जो फायदेमंद होता है । ये LDL को कम भी करते है अतः इनकी तेल में अधिक मात्रा होनी चाहिए। इन फैट की मात्रा पैकिंग पर देख लेनी चाहिए ।
इसके अलावा हर तेल का एक स्मोक पॉइंट होता है। ये वह तापमान है जिससे अधिक गर्म होने पर तेल से नुकसान देह तत्व निकलने शुरू हो जाते है अतः तलने का तेल या पराठे आदि बनाने के लिए अधिक स्मोक पॉइंट वाला तेल सही रहता है।
सब्जी बनाने में तेल बहुत अधिक देर तक तेज गर्म नहीं होता अतः सब्जी बनाने में कम स्मोक पॉइंट वाला तेल ले सकते है। आजकल कई प्रकार के सलाद ट्रेंड में है। सलाद में तेल को ठंडा ही डाला जाता है। सलाद में डालने के लिए जैतून का तेल ( Olive oil ) अच्छा रहता है।
रिफाइण्ड तेल प्रोसेस किये हुए होते है। ऐसा करके उनका स्मोक पॉइंट बढ़ा दिया जाता है।
विभिन्न प्रकार के तेल व घी में फैट की मात्रा प्रति 100 ग्राम तथा स्मोक पॉइंट इस प्रकार होते हैं –
तेल 100 ग्राम | सेचुरेटेड फैट % | MUFA % | PUFA % | स्मोक पॉइंट |
---|---|---|---|---|
मूंगफली | 17 | 46 | 32 | 225°C |
सूरजमुखी | 11 | 20 | 69 | 225°C |
सोयाबीन | 16 | 23 | 58 | 257°C |
जैतून | 14 | 73 | 11 | 190°C |
सरसों | 12 | 60 | 21 | 254°C |
नारियल | 86 | 6 | 2 | 177°C |
राईस ब्रान | 25 | 38 | 37 | 232°C |
कॉर्न | 15 | 30 | 55 | 230°C |
मक्खन | 51 | 21 | 3 | 150°C |
घी | 62 | 29 | 4 | 252°C |
मूंगफली , सरसों , राइस ब्रान , सोयाबीन ,सूरजमुखी का तेल अधिक स्मोक पॉइंट वाले तेल है। इनमे भी सरसों के तेल का स्मोकिंग पॉइंट सबसे ज्यादा है।
घी का स्मोक पॉइंट भी अधिक होता है। इन्हें तलने का तेल में या पराठे बनाने में काम ले सकते है। जिस तेल का स्मोक पॉइंट कम हो उस तेल को तलने आदि में काम नहीं लेना चाहिए। जैतून के तेल , नारियल का तेल , तिल का तेल , बटर का स्मोक पॉइंट कम होता है। इसलिए इन्हें तलने में काम नहीं लेना चाहिए।
तेल को जितनी बार और जितनी ज्यादा देर तक गर्म करते है उसमे फैटी एसिड की मात्रा बढ़ती चली जाती है तथा उसका स्मोक पॉइंट कम होता जाता है। इसलिए दो बार से ज्यादा बार तलने का तेल गर्म किया गया है तो उसे काम नहीं लेना चाहिए ।
फैट हमें दूध , अनाज , दाल , सब्जी आदि से भी मिलते है। अतः तेल और घी का अधिक यूज़ नहीं करना चाहिए।
खाने के लिए अलग अलग तेल के अलग फायदे और नुकसान होते है। सभी तरह के पोषक तत्व शरीर को मिलें उसके लिए एक ही प्रकार के तेल को हर जगह काम लेने के बजाय तेल को बदल बदल कर काम मे लेना अच्छा रहता है। हर दो महीने में तेल बदल लेना ठीक होता है।
इससे दिल की बीमारियां, मोटापा,डायबिटीज व तेल के कारण होने वाली अन्य बीमारियों की आशंका कम हो जाती है।