भारत में अब तक जितने भी प्रधानमंत्री हुए हैं, प्रधानमंत्री आवास में वो सभी अपने परिवार के साथ रहे हैं. नेहरू के साथ बेटी इंदिरा रहती थ...
भारत में अब तक जितने भी प्रधानमंत्री हुए हैं, प्रधानमंत्री आवास में वो सभी अपने परिवार के साथ रहे हैं. नेहरू के साथ बेटी इंदिरा रहती थीं. उनके उत्तराधिकारी लाल बहादुर शास्त्री 1, मोतीलाल नेहरू मार्ग पर अपने पूरे कुनबे के साथ रहते थे. उनके साथ बेटा-बेटी, पोता-पोती सब रहते थे. इंदिरा गांधी के बेटे राजीव, संजय और उनका परिवार साथ रहते थे. यहां तक कि शादी न करने वाले अटल बिहारी वाजपेयी के साथ भी एक परिवार रहता था. 1998 में जब वो 7, रेसकोर्स पहुंचे, तो उनकी दत्तक पुत्री नम्रता और उनके पति रंजन भट्टाचार्य का परिवार भी साथ रहने आया.
प्रधानमंत्रियों की इस लिस्ट में अगर किसी का नाम नहीं है, तो वो हैं नरेंद्र मोदी. मोदी देश के पहले और इकलौते ऐसे प्रधानमंत्री हैं, जिनके भाई-भतीजे और परिवार के दूसरे सदस्य उनकी ऊंची अहमियत से दूर लगभग अनजान सी जिंदगी जी रहे हैं. आइए आपको प्रधानमंत्री के परिवार से मिलवाले हैं.
ये प्रधानमंत्री के सबसे बड़े भाई 75 साल के सोमभाई मोदी हैं. तस्वीर में वो वड़नगर में अपने वृद्धाश्रम के लोगों के साथ हैं. अक्टूबर में पुणे में एक NGO के कार्यक्रम में संचालक ने मंच से सबको बता दिया कि सोमभाई नरेंद्र मोदी के बड़े भाई हैं. सब चौंक गए. फिर सोमभाई ने सफाई दी, ‘मेरे और प्रधानमंत्री के बीच एक परदा है. मैं उसे देख सकता हूं पर आप नहीं देख सकते. मैं नरेंद्र मोदी का भाई हूं, प्रधानमंत्री का नहीं.प्रधानमंत्री मोदी के लिए तो मैं 123 करोड़ देशवासियों में से ही एक हूं, जो सभी उसके भाई-बहन हैं.
सोमभाई नरेंद्र के पीएम बनने के बाद पिछले ढाई सालों से उनसे नहीं मिले हैं. भाइयों के बीच सिर्फ फोन पर ही बात हुई है. उनसे छोटे पंकज इस मामले में थोड़ा खुशकिस्मत हैं. गुजरात सूचना विभाग में अफसर पंकज अपने भाई से मिल लेते हैं, क्योंकि उनकी मां हीराबेन उन्हीं के साथ गांधीनगर के तीन कमरे के साधारण से घर में रहती हैं. पीएम पिछले दो महीने में दो बार अपनी मां से मिलने आ चुके हैं. मोदी मई, 2016 में अपनी मां को हफ्तेभर के लिए दिल्ली आवास लाए थे.
ये प्रधानमंत्री के बड़े भाई 72 साल के अमृतभाई मोदी हैं, जो एक प्राइवेट कंपनी में फिटर के पद से रिटायर हुए. 2005 में उनकी तनख्वाह 10 हजार रुपए थी. अब वो अहमदाबाद के घाटलोदिया इलाके में चार कमरों के मकान में रिटायरमेंट वाली जिंदगी जी रहे हैं. उनके साथ उनका 47 साल का बेटा संजय, उसकी पत्नी और दो बच्चे रहते हैं. संजय छोटा-मोटा कारोबार चलाते हैं और अपनी लेथ मशीन पर छोटे कल-पुर्जे बनाते हैं.
संजय के पास वो आयरन है, जिससे नरेंद्र मोदी 1969-1971 में अहमदाबाद में रहने के दौरान इस्तेमाल करते थे. उन्होंने घरवालों को इसे कबाड़ में नहीं बेचने दिया और संभालकर रखा है. कहते हैं, ‘अगर काका इसे देखें, तो उन्हें ऐसा लगेगा, जैसे टाइटेनिक का अवशेष मिला हो. ये घर भी उन्हें म्यूजियम जैसा लगेगा.’ इस घर में सिन्नी ब्रांड का वो पंखा अब भी है, जिसे मोदी गर्मी में इस्तेमाल करते थे.
ये मोदी के चचेरे भाई अशोकभाई हैं, जो मोदी के दिवंगत चाचा नरसिंह दास के बेचे हैं. ये वड़नगर के घीकांटा बाजार में एक ठेले पर पतंगें, पटाखे और खाने-पीने की छोटी-मोटी चीजें बेचते हैं. अब उन्होंने डेढ़ हजार रुपए महीने के किराए पर 8×4 फुट की दुकान किराए पर ले ली है, जिससे उन्हें करीब चार हजार रुपए मिल जाते हैं. पत्नी वीणा के साथ एक स्थानीय जैन व्यापारी के साप्ताहिक गरीबों को खाना खिलाने के आयोजन में काम करके तीन हजार रुपए और जुटा लेते हैं. इसमें अशोकभाई खिचड़ी और कढ़ी बनाते हैं और वीणा बरतन मांजती हैं. ये तीन कमरों के एक मकान में रहते हैं.
ये अशोक के बड़े भाई 55 साल के भरतभाई हैं, जो वड़नगर से 80 किमी दूर पालनपुर के पास लालवाड़ा गांव में एक पेट्रोल पंप पर 6 हजार रुपए महीने में अटेंडेंट का काम करते हैं और हर 10 दिनों में घर जाते हैं. वड़नगर में उनकी पत्नी रमीलाबेन पुराने भोजक शेरी इलाके में घर में ही किराना सामान बेचकर महीने में लगभग तीन हजार रुपए कमा लेती हैं. तीसरे भाई 48 साल के चंद्रकांत अहमदाबाद के एक पशुगृह में हेल्पर का काम करते हैं.
ये अशोक और भरत के चौथे भाई 61 साल के अरविंद हैं, जो कबाड़ी का काम करते हैं. वो वड़नगर और आसपास के गांवों में फेरी लगाकर पुराने तेल के टिन और ऐसा कबाड़ खरीदते हैं, फिर उसे ऑटो या बस से ले आते हैं. बड़े व्यापारियों को ये बेचकर उन्हें महीने में 6-7 हजार रुपए की कमाई हो जाती है, जो उनके और पत्नी रजनीबेन के लिए काफी है. उनका कोई बच्चा नहीं है.
नरेंद्र के परिवार के कुछ सदस्य उनके सबसे छोटे भाई प्रह्लाद मोदी से दूरी बनाए रखते हैं. वो गल्ले की दुकान चलाते हैं और गुजरात राज्य सस्ता गल्ला दुकान मालिक संगठन के अध्यक्ष हैं. वो सार्वजनिक वितरण प्रणाली में पारदर्शिता लाने के मामले में मुख्यमंत्री मोदी की पहल से नाराज रहते हैं और दुकान मालिकों पर छापा डालने के खिलाफ प्रदर्शन कर चुके हैं.
RSS का नियम है कि प्रचारक को परिवार से दूरी बनानी होती है. इसी वजह से वो परिवार से दूर रहने लगे थे. मोदी कुनबा आज भी उसी तरह गुमनाम जिंदगी जी रहा है, जैसी वो 2001 में नरेंद्र के पहली बार सीएम बनने के समय जीता था. मोदी खुद इस बात की तारीफ करते हुए कहते हैं, ‘इसका श्रेय मेरे भाइयों और भतीजों को दिया जाना चाहिए कि वो साधारण जीवन जी रहे हैं और कभी मुझ पर दबाव बनाने की कोशिश नहीं की. आज की दुनिया ऐसा वाकई दुर्लभ है.’
सोमभाई नरेंद्र के पीएम बनने के बाद पिछले ढाई सालों से उनसे नहीं मिले हैं. भाइयों के बीच सिर्फ फोन पर ही बात हुई है. उनसे छोटे पंकज इस मामले में थोड़ा खुशकिस्मत हैं. गुजरात सूचना विभाग में अफसर पंकज अपने भाई से मिल लेते हैं, क्योंकि उनकी मां हीराबेन उन्हीं के साथ गांधीनगर के तीन कमरे के साधारण से घर में रहती हैं. पीएम पिछले दो महीने में दो बार अपनी मां से मिलने आ चुके हैं. मोदी मई, 2016 में अपनी मां को हफ्तेभर के लिए दिल्ली आवास लाए थे.
ये प्रधानमंत्री के बड़े भाई 72 साल के अमृतभाई मोदी हैं, जो एक प्राइवेट कंपनी में फिटर के पद से रिटायर हुए. 2005 में उनकी तनख्वाह 10 हजार रुपए थी. अब वो अहमदाबाद के घाटलोदिया इलाके में चार कमरों के मकान में रिटायरमेंट वाली जिंदगी जी रहे हैं. उनके साथ उनका 47 साल का बेटा संजय, उसकी पत्नी और दो बच्चे रहते हैं. संजय छोटा-मोटा कारोबार चलाते हैं और अपनी लेथ मशीन पर छोटे कल-पुर्जे बनाते हैं.
संजय के पास वो आयरन है, जिससे नरेंद्र मोदी 1969-1971 में अहमदाबाद में रहने के दौरान इस्तेमाल करते थे. उन्होंने घरवालों को इसे कबाड़ में नहीं बेचने दिया और संभालकर रखा है. कहते हैं, ‘अगर काका इसे देखें, तो उन्हें ऐसा लगेगा, जैसे टाइटेनिक का अवशेष मिला हो. ये घर भी उन्हें म्यूजियम जैसा लगेगा.’ इस घर में सिन्नी ब्रांड का वो पंखा अब भी है, जिसे मोदी गर्मी में इस्तेमाल करते थे.
ये मोदी के चचेरे भाई अशोकभाई हैं, जो मोदी के दिवंगत चाचा नरसिंह दास के बेचे हैं. ये वड़नगर के घीकांटा बाजार में एक ठेले पर पतंगें, पटाखे और खाने-पीने की छोटी-मोटी चीजें बेचते हैं. अब उन्होंने डेढ़ हजार रुपए महीने के किराए पर 8×4 फुट की दुकान किराए पर ले ली है, जिससे उन्हें करीब चार हजार रुपए मिल जाते हैं. पत्नी वीणा के साथ एक स्थानीय जैन व्यापारी के साप्ताहिक गरीबों को खाना खिलाने के आयोजन में काम करके तीन हजार रुपए और जुटा लेते हैं. इसमें अशोकभाई खिचड़ी और कढ़ी बनाते हैं और वीणा बरतन मांजती हैं. ये तीन कमरों के एक मकान में रहते हैं.
ये अशोक के बड़े भाई 55 साल के भरतभाई हैं, जो वड़नगर से 80 किमी दूर पालनपुर के पास लालवाड़ा गांव में एक पेट्रोल पंप पर 6 हजार रुपए महीने में अटेंडेंट का काम करते हैं और हर 10 दिनों में घर जाते हैं. वड़नगर में उनकी पत्नी रमीलाबेन पुराने भोजक शेरी इलाके में घर में ही किराना सामान बेचकर महीने में लगभग तीन हजार रुपए कमा लेती हैं. तीसरे भाई 48 साल के चंद्रकांत अहमदाबाद के एक पशुगृह में हेल्पर का काम करते हैं.
ये अशोक और भरत के चौथे भाई 61 साल के अरविंद हैं, जो कबाड़ी का काम करते हैं. वो वड़नगर और आसपास के गांवों में फेरी लगाकर पुराने तेल के टिन और ऐसा कबाड़ खरीदते हैं, फिर उसे ऑटो या बस से ले आते हैं. बड़े व्यापारियों को ये बेचकर उन्हें महीने में 6-7 हजार रुपए की कमाई हो जाती है, जो उनके और पत्नी रजनीबेन के लिए काफी है. उनका कोई बच्चा नहीं है.
नरेंद्र के परिवार के कुछ सदस्य उनके सबसे छोटे भाई प्रह्लाद मोदी से दूरी बनाए रखते हैं. वो गल्ले की दुकान चलाते हैं और गुजरात राज्य सस्ता गल्ला दुकान मालिक संगठन के अध्यक्ष हैं. वो सार्वजनिक वितरण प्रणाली में पारदर्शिता लाने के मामले में मुख्यमंत्री मोदी की पहल से नाराज रहते हैं और दुकान मालिकों पर छापा डालने के खिलाफ प्रदर्शन कर चुके हैं.
RSS का नियम है कि प्रचारक को परिवार से दूरी बनानी होती है. इसी वजह से वो परिवार से दूर रहने लगे थे. मोदी कुनबा आज भी उसी तरह गुमनाम जिंदगी जी रहा है, जैसी वो 2001 में नरेंद्र के पहली बार सीएम बनने के समय जीता था. मोदी खुद इस बात की तारीफ करते हुए कहते हैं, ‘इसका श्रेय मेरे भाइयों और भतीजों को दिया जाना चाहिए कि वो साधारण जीवन जी रहे हैं और कभी मुझ पर दबाव बनाने की कोशिश नहीं की. आज की दुनिया ऐसा वाकई दुर्लभ है.’