राजविद्याराजगुह्ययोग ~ अध्याय नौ ~ RajVidyaRajGuhyaYog ~ Bhagwat Geeta Chapter 9

अथ नवमोऽध्यायः- राजविद्याराजगुह्ययोग परम गोपनीय ज्ञानोपदेश, उपासनात्मक ज्ञान, ईश्वर का विस्तार श्रीभगवानुवाच इदं तु ते गुह्यतमं प्रवक्ष्याम्...


अथ नवमोऽध्यायः- राजविद्याराजगुह्ययोग

परम गोपनीय ज्ञानोपदेश, उपासनात्मक ज्ञान, ईश्वर का विस्तार


श्रीभगवानुवाच

इदं तु ते गुह्यतमं प्रवक्ष्याम्यनसूयवे ।
ज्ञानं विज्ञानसहितं यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात्‌॥9.1

śrī bhagavānuvāca
idaṅ tu tē guhyatamaṅ pravakṣyāmyanasūyavē.
jñānaṅ vijñānasahitaṅ yajjñātvā mōkṣyasē.śubhāt৷৷9.1৷৷


भावार्थ : श्री भगवान बोले- तुझ दोषदृष्टिरहित भक्त के लिए इस परम गोपनीय विज्ञान सहित ज्ञान को पुनः भली भाँति कहूँगा, जिसको जानकर तू दुःखरूप संसार से मुक्त हो जाएगा॥1॥



राजविद्या राजगुह्यं पवित्रमिदमुत्तमम्‌ ।
प्रत्यक्षावगमं धर्म्यं सुसुखं कर्तुमव्ययम्‌ ॥9.2

rājavidyā rājaguhyaṅ pavitramidamuttamam.
pratyakṣāvagamaṅ dharmyaṅ susukhaṅ kartumavyayam৷৷9.2৷৷


भावार्थ : यह विज्ञान सहित ज्ञान सब विद्याओं का राजा, सब गोपनीयों का राजा, अति पवित्र, अति उत्तम, प्रत्यक्ष फलवाला, धर्मयुक्त, साधन करने में बड़ा सुगम और अविनाशी है॥2॥



अश्रद्दधानाः पुरुषा धर्मस्यास्य परन्तप ।
अप्राप्य मां निवर्तन्ते मृत्युसंसारवर्त्मनि ॥9.3

aśraddadhānāḥ puruṣā dharmasyāsya parantapa.
aprāpya māṅ nivartantē mṛtyusaṅsāravartmani৷৷9.3৷৷

भावार्थ : हे परंतप! इस उपयुक्त धर्म में श्रद्धारहित पुरुष मुझको न प्राप्त होकर मृत्युरूप संसार चक्र में भ्रमण करते रहते हैं॥3॥




मया ततमिदं सर्वं जगदव्यक्तमूर्तिना ।
मत्स्थानि सर्वभूतानि न चाहं तेषवस्थितः ॥9.4

mayā tatamidaṅ sarvaṅ jagadavyaktamūrtinā.
matsthāni sarvabhūtāni na cāhaṅ tēṣvavasthitaḥ৷৷9.4৷৷


भावार्थ : मुझ निराकार परमात्मा से यह सब जगत्‌ जल से बर्फ के सदृश परिपूर्ण है और सब भूत मेरे अंतर्गत संकल्प के आधार स्थित हैं, किंतु वास्तव में मैं उनमें स्थित नहीं हूँ॥4॥


न च मत्स्थानि भूतानि पश्य मे योगमैश्वरम्‌ ।
भूतभृन्न च भूतस्थो ममात्मा भूतभावनः ॥9.5

na ca matsthāni bhūtāni paśya mē yōgamaiśvaram.
bhūtabhṛnna ca bhūtasthō mamātmā bhūtabhāvanaḥ৷৷9.5৷৷


भावार्थ : वे सब भूत मुझमें स्थित नहीं हैं, किंतु मेरी ईश्वरीय योगशक्ति को देख कि भूतों का धारण-पोषण करने वाला और भूतों को उत्पन्न करने वाला भी मेरा आत्मा वास्तव में भूतों में स्थित नहीं है॥5॥


यथाकाशस्थितो नित्यं वायुः सर्वत्रगो महान्‌ ।
तथा सर्वाणि भूतानि मत्स्थानीत्युपधारय ॥9.6

yathā৷৷kāśasthitō nityaṅ vāyuḥ sarvatragō mahān.
tathā sarvāṇi bhūtāni matsthānītyupadhāraya৷৷9.6৷৷


भावार्थ : जैसे आकाश से उत्पन्न सर्वत्र विचरने वाला महान्‌ वायु सदा आकाश में ही स्थित है, वैसे ही मेरे संकल्प द्वारा उत्पन्न होने से संपूर्ण भूत मुझमें स्थित हैं, ऐसा जान॥6॥



जगत की उत्पत्ति का विषय

सर्वभूतानि कौन्तेय प्रकृतिं यान्ति मामिकाम्‌ ।
कल्पक्षये पुनस्तानि कल्पादौ विसृजाम्यहम्‌ ॥9.7

sarvabhūtāni kauntēya prakṛtiṅ yānti māmikām.
kalpakṣayē punastāni kalpādau visṛjāmyaham৷৷9.7৷৷
भावार्थ : हे अर्जुन! कल्पों के अन्त में सब भूत मेरी प्रकृति को प्राप्त होते हैं अर्थात्‌ प्रकृति में लीन होते हैं और कल्पों के आदि में उनको मैं फिर रचता हूँ॥7॥



प्रकृतिं स्वामवष्टभ्य विसृजामि पुनः पुनः ।
भूतग्राममिमं कृत्स्नमवशं प्रकृतेर्वशात्‌ ॥9.8

prakṛtiṅ svāmavaṣṭabhya visṛjāmi punaḥ punaḥ.
bhūtagrāmamimaṅ kṛtsnamavaśaṅ prakṛtērvaśāt৷৷9.8৷৷


भावार्थ : अपनी प्रकृति को अंगीकार करके स्वभाव के बल से परतंत्र हुए इस संपूर्ण भूतसमुदाय को बार-बार उनके कर्मों के अनुसार रचता हूँ॥8॥



न च मां तानि कर्माणि निबध्नन्ति धनञ्जय।
उदासीनवदासीनमसक्तं तेषु कर्मसु ॥9.9

na ca māṅ tāni karmāṇi nibadhnanti dhanañjaya.
udāsīnavadāsīnamasaktaṅ tēṣu karmasu৷৷9.9৷৷


भावार्थ : हे अर्जुन! उन कर्मों में आसक्तिरहित और उदासीन के सदृश (जिसके संपूर्ण कार्य कर्तृत्व भाव के बिना अपने आप सत्ता मात्र ही होते हैं उसका नाम 'उदासीन के सदृश' है।) स्थित मुझ परमात्मा को वे कर्म नहीं बाँधते॥9॥


मयाध्यक्षेण प्रकृतिः सूयते सचराचरं ।
हेतुनानेन कौन्तेय जगद्विपरिवर्तते ॥9.10

mayā.dhyakṣēṇa prakṛtiḥ sūyatē sacarācaram.
hētunā.nēna kauntēya jagadviparivartatē৷৷9.10৷৷


भावार्थ : हे अर्जुन! मुझ अधिष्ठाता के सकाश से प्रकृति चराचर सहित सर्वजगत को रचती है और इस हेतु से ही यह संसारचक्र घूम रहा है॥10॥


भगवान का तिरस्कार करने वाले आसुरी प्रकृति वालों की निंदा और देवी प्रकृति वालों के भगवद् भजन का प्रकार

अवजानन्ति मां मूढा मानुषीं तनुमाश्रितम्‌।
परं भावमजानन्तो मम भूतमहेश्वरम्‌ ॥9.11

avajānanti māṅ mūḍhā mānuṣīṅ tanumāśritam.
paraṅ bhāvamajānantō mama bhūtamahēśvaram৷৷9.11৷৷


भावार्थ : मेरे परमभाव को (गीता अध्याय 7 श्लोक 24 में देखना चाहिए) न जानने वाले मूढ़ लोग मनुष्य का शरीर धारण करने वाले मुझ संपूर्ण भूतों के महान्‌ ईश्वर को तुच्छ समझते हैं अर्थात्‌ अपनी योग माया से संसार के उद्धार के लिए मनुष्य रूप में विचरते हुए मुझ परमेश्वर को साधारण मनुष्य मानते हैं॥11॥


मोघाशा मोघकर्माणो मोघज्ञाना विचेतसः ।
राक्षसीमासुरीं चैव प्रकृतिं मोहिनीं श्रिताः ॥9.12

mōghāśā mōghakarmāṇō mōghajñānā vicētasaḥ.
rākṣasīmāsurīṅ caiva prakṛtiṅ mōhinīṅ śritāḥ৷৷9.12৷৷


भावार्थ : वे व्यर्थ आशा, व्यर्थ कर्म और व्यर्थ ज्ञान वाले विक्षिप्तचित्त अज्ञानीजन राक्षसी, आसुरी और मोहिनी प्रकृति को (जिसको आसुरी संपदा के नाम से विस्तारपूर्वक भगवान ने गीता अध्याय 16 श्लोक 4 तथा श्लोक 7 से 21 तक में कहा है) ही धारण किए रहते हैं॥12॥


महात्मानस्तु मां पार्थ दैवीं प्रकृतिमाश्रिताः ।
भजन्त्यनन्यमनसो ज्ञात्वा भूतादिमव्यम्‌ ॥9.13

mahātmānastu māṅ pārtha daivīṅ prakṛtimāśritāḥ.
bhajantyananyamanasō jñātvā bhūtādimavyayam৷৷9.13৷৷


भावार्थ : परंतु हे कुन्तीपुत्र! दैवी प्रकृति के (इसका विस्तारपूर्वक वर्णन गीता अध्याय 16 श्लोक 1 से 3 तक में देखना चाहिए) आश्रित महात्माजन मुझको सब भूतों का सनातन कारण और नाशरहित अक्षरस्वरूप जानकर अनन्य मन से युक्त होकर निरंतर भजते हैं॥13॥




सततं कीर्तयन्तो मां यतन्तश्च दृढ़व्रताः ।
नमस्यन्तश्च मां भक्त्या नित्ययुक्ता उपासते ॥9.14

satataṅ kīrtayantō māṅ yatantaśca dṛḍhavratāḥ.
namasyantaśca māṅ bhaktyā nityayuktā upāsatē৷৷9.14৷৷


भावार्थ : वे दृढ़ निश्चय वाले भक्तजन निरंतर मेरे नाम और गुणों का कीर्तन करते हुए तथा मेरी प्राप्ति के लिए यत्न करते हुए और मुझको बार-बार प्रणाम करते हुए सदा मेरे ध्यान में युक्त होकर अनन्य प्रेम से मेरी उपासना करते हैं॥14॥



ज्ञानयज्ञेन चाप्यन्ते यजन्तो मामुपासते।
एकत्वेन पृथक्त्वेन बहुधा विश्वतोमुखम्॥9.15

jñānayajñēna cāpyanyē yajantō māmupāsatē.
ēkatvēna pṛthaktvēna bahudhā viśvatōmukham৷৷9.15৷৷


भावार्थ : दूसरे ज्ञानयोगी मुझ निर्गुण-निराकार ब्रह्म का ज्ञानयज्ञ द्वारा अभिन्नभाव से पूजन करते हुए भी मेरी उपासना करते हैं और दूसरे मनुष्य बहुत प्रकार से स्थित मुझ विराट स्वरूप परमेश्वर की पृथक भाव से उपासना करते हैं।।15।।



सर्वात्म रूप से प्रभाव सहित भगवान के स्वरूप का वर्णन

अहं क्रतुरहं यज्ञः स्वधाहमहमौषधम्‌ ।
मंत्रोऽहमहमेवाज्यमहमग्निरहं हुतम्‌ ॥9.16

ahaṅ kraturahaṅ yajñaḥ svadhā.hamahamauṣadham.
maṅtrō.hamahamēvājyamahamagnirahaṅ hutam৷৷9.16৷৷


भावार्थ : क्रतु मैं हूँ, यज्ञ मैं हूँ, स्वधा मैं हूँ, औषधि मैं हूँ, मंत्र मैं हूँ, घृत मैं हूँ, अग्नि मैं हूँ और हवनरूप क्रिया भी मैं ही हूँ॥16॥



पिताहमस्य जगतो माता धाता पितामहः ।
वेद्यं पवित्रमोङ्कार ऋक्साम यजुरेव च ॥9.17

pitā.hamasya jagatō mātā dhātā pitāmahaḥ.
vēdyaṅ pavitramōṅkāra ṛk sāma yajurēva ca৷৷9.17৷৷
भावार्थ : इस संपूर्ण जगत्‌ का धाता अर्थात्‌ धारण करने वाला एवं कर्मों के फल को देने वाला, पिता, माता, पितामह, जानने योग्य, (गीता अध्याय 13 श्लोक 12 से 17 तक में देखना चाहिए) पवित्र ओंकार तथा ऋग्वेद, सामवेद और यजुर्वेद भी मैं ही हूँ॥17॥




गतिर्भर्ता प्रभुः साक्षी निवासः शरणं सुहृत्‌ ।
प्रभवः प्रलयः स्थानं निधानं बीजमव्ययम्‌॥9.18

gatirbhartā prabhuḥ sākṣī nivāsaḥ śaraṇaṅ suhṛt.
prabhavaḥ pralayaḥ sthānaṅ nidhānaṅ bījamavyayam৷৷9.18৷৷
भावार्थ : प्राप्त होने योग्य परम धाम, भरण-पोषण करने वाला, सबका स्वामी, शुभाशुभ का देखने वाला, सबका वासस्थान, शरण लेने योग्य, प्रत्युपकार न चाहकर हित करने वाला, सबकी उत्पत्ति-प्रलय का हेतु, स्थिति का आधार, निधान (प्रलयकाल में संपूर्ण भूत सूक्ष्म रूप से जिसमें लय होते हैं उसका नाम 'निधान' है) और अविनाशी कारण भी मैं ही हूँ॥18॥


तपाम्यहमहं वर्षं निगृह्‌णाम्युत्सृजामि च ।
अमृतं चैव मृत्युश्च सदसच्चाहमर्जुन ॥9.19

tapāmyahamahaṅ varṣaṅ nigṛhṇāmyutsṛjāmi ca.
amṛtaṅ caiva mṛtyuśca sadasaccāhamarjuna৷৷9.19৷৷


भावार्थ : मैं ही सूर्यरूप से तपता हूँ, वर्षा का आकर्षण करता हूँ और उसे बरसाता हूँ। हे अर्जुन! मैं ही अमृत और मृत्यु हूँ और सत्‌-असत्‌ भी मैं ही हूँ॥19॥



सकाम और निष्काम उपासना का फल

त्रैविद्या मां सोमपाः पूतपापायज्ञैरिष्ट्‍वा स्वर्गतिं प्रार्थयन्ते।
ते पुण्यमासाद्य सुरेन्द्रलोकमश्नन्ति दिव्यान्दिवि देवभोगान्‌ ॥9.20

traividyā māṅ sōmapāḥ pūtapāpā
yajñairiṣṭvā svargatiṅ prārthayantē.
tē puṇyamāsādya surēndralōka-
maśnanti divyāndivi dēvabhōgān৷৷9.20৷৷


भावार्थ : तीनों वेदों में विधान किए हुए सकाम कर्मों को करने वाले, सोम रस को पीने वाले, पापरहित पुरुष (यहाँ स्वर्ग प्राप्ति के प्रतिबंधक देव ऋणरूप पाप से पवित्र होना समझना चाहिए) मुझको यज्ञों के द्वारा पूजकर स्वर्ग की प्राप्ति चाहते हैं, वे पुरुष अपने पुण्यों के फलरूप स्वर्गलोक को प्राप्त होकर स्वर्ग में दिव्य देवताओं के भोगों को भोगते हैं॥20॥



ते तं भुक्त्वा स्वर्गलोकं विशालंक्षीणे पुण्य मर्त्यलोकं विशन्ति।
एवं त्रयीधर्ममनुप्रपन्ना गतागतं कामकामा लभन्ते ॥9.21

tē taṅ bhuktvā svargalōkaṅ viśālaṅ
kṣīṇē puṇyē martyalōkaṅ viśanti.
ēva trayīdharmamanuprapannā
gatāgataṅ kāmakāmā labhantē৷৷9.21৷৷

भावार्थ : वे उस विशाल स्वर्गलोक को भोगकर पुण्य क्षीण होने पर मृत्यु लोक को प्राप्त होते हैं। इस प्रकार स्वर्ग के साधनरूप तीनों वेदों में कहे हुए सकामकर्म का आश्रय लेने वाले और भोगों की कामना वाले पुरुष बार-बार आवागमन को प्राप्त होते हैं, अर्थात्‌ पुण्य के प्रभाव से स्वर्ग में जाते हैं और पुण्य क्षीण होने पर मृत्युलोक में आते हैं॥21॥


अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते ।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्‌ ॥9.22

ananyāśicantayantō māṅ yē janāḥ paryupāsatē.
tēṣāṅ nityābhiyuktānāṅ yōgakṣēmaṅ vahāmyaham৷৷9.22৷৷


भावार्थ : जो अनन्यप्रेमी भक्तजन मुझ परमेश्वर को निरंतर चिंतन करते हुए निष्कामभाव से भजते हैं, उन नित्य-निरंतर मेरा चिंतन करने वाले पुरुषों का योगक्षेम (भगवत्‌स्वरूप की प्राप्ति का नाम 'योग' है और भगवत्‌प्राप्ति के निमित्त किए हुए साधन की रक्षा का नाम 'क्षेम' है) मैं स्वयं प्राप्त कर देता हूँ॥22॥



येऽप्यन्यदेवता भक्ता यजन्ते श्रद्धयान्विताः ।
तेऽपि मामेव कौन्तेय यजन्त्यविधिपूर्वकम्‌ ॥9.23

yē.pyanyadēvatā bhaktā yajantē śraddhayā.nvitāḥ.
tē.pi māmēva kauntēya yajantyavidhipūrvakam৷৷9.23৷৷


भावार्थ : हे अर्जुन! यद्यपि श्रद्धा से युक्त जो सकाम भक्त दूसरे देवताओं को पूजते हैं, वे भी मुझको ही पूजते हैं, किंतु उनका वह पूजन अविधिपूर्वक अर्थात्‌ अज्ञानपूर्वक है॥23॥


अहं हि सर्वयज्ञानां भोक्ता च प्रभुरेव च ।
न तु मामभिजानन्ति तत्त्वेनातश्च्यवन्ति ते ॥9.24

ahaṅ hi sarvayajñānāṅ bhōktā ca prabhurēva ca.
na tu māmabhijānanti tattvēnātaścyavanti tē৷৷9.24৷৷


भावार्थ : क्योंकि संपूर्ण यज्ञों का भोक्ता और स्वामी भी मैं ही हूँ, परंतु वे मुझ परमेश्वर को तत्त्व से नहीं जानते, इसी से गिरते हैं अर्थात्‌ पुनर्जन्म को प्राप्त होते हैं॥24॥



यान्ति देवव्रता देवान्पितृन्यान्ति पितृव्रताः ।
भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मद्याजिनोऽपि माम्‌ ॥9.25

yānti dēvavratā dēvān pitṛnyānti pitṛvratāḥ.
bhūtāni yānti bhūtējyā yānti madyājinō.pi mām৷৷9.25৷৷
भावार्थ : देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं, पितरों को पूजने वाले पितरों को प्राप्त होते हैं, भूतों को पूजने वाले भूतों को प्राप्त होते हैं और मेरा पूजन करने वाले भक्त मुझको ही प्राप्त होते हैं। इसीलिए मेरे भक्तों का पुनर्जन्म नहीं होता (गीता अध्याय 8 श्लोक 16 में देखना चाहिए)॥25॥



निष्काम भगवद् भक्ति की महिमा


पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति ।
तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मनः ॥9.26

patraṅ puṣpaṅ phalaṅ tōyaṅ yō mē bhaktyā prayacchati.
tadahaṅ bhaktyupahṛtamaśnāmi prayatātmanaḥ৷৷9.26৷৷


भावार्थ : जो कोई भक्त मेरे लिए प्रेम से पत्र, पुष्प, फल, जल आदि अर्पण करता है, उस शुद्धबुद्धि निष्काम प्रेमी भक्त का प्रेमपूर्वक अर्पण किया हुआ वह पत्र-पुष्पादि मैं सगुणरूप से प्रकट होकर प्रीतिसहित खाता हूँ॥26॥


यत्करोषि यदश्नासि यज्जुहोषि ददासि यत्‌ ।
यत्तपस्यसि कौन्तेय तत्कुरुष्व मदर्पणम्‌ ॥9.27

yatkarōṣi yadaśnāsi yajjuhōṣi dadāsi yat.
yattapasyasi kauntēya tatkuruṣva madarpaṇam৷৷9.27৷৷


भावार्थ : हे अर्जुन! तू जो कर्म करता है, जो खाता है, जो हवन करता है, जो दान देता है और जो तप करता है, वह सब मेरे अर्पण कर॥27॥



शुभाशुभफलैरेवं मोक्ष्य से कर्मबंधनैः ।
सन्न्यासयोगमुक्तात्मा विमुक्तो मामुपैष्यसि ॥9.28

śubhāśubhaphalairēvaṅ mōkṣyasē karmabandhanaiḥ.
saṅnyāsayōgayuktātmā vimuktō māmupaiṣyasi৷৷9.28৷৷


भावार्थ : इस प्रकार, जिसमें समस्त कर्म मुझ भगवान के अर्पण होते हैं- ऐसे संन्यासयोग से युक्त चित्तवाला तू शुभाशुभ फलरूप कर्मबंधन से मुक्त हो जाएगा और उनसे मुक्त होकर मुझको ही प्राप्त होगा। ॥28॥



समोऽहं सर्वभूतेषु न मे द्वेष्योऽस्ति न प्रियः ।
ये भजन्ति तु मां भक्त्या मयि ते तेषु चाप्यहम्‌ ॥9.29

samō.haṅ sarvabhūtēṣu na mē dvēṣyō.sti na priyaḥ.
yē bhajanti tu māṅ bhaktyā mayi tē tēṣu cāpyaham৷৷9.29৷৷


भावार्थ : मैं सब भूतों में समभाव से व्यापक हूँ, न कोई मेरा अप्रिय है और न प्रिय है, परंतु जो भक्त मुझको प्रेम से भजते हैं, वे मुझमें हैं और मैं भी उनमें प्रत्यक्ष प्रकट (जैसे सूक्ष्म रूप से सब जगह व्यापक हुआ भी अग्नि साधनों द्वारा प्रकट करने से ही प्रत्यक्ष होता है, वैसे ही सब जगह स्थित हुआ भी परमेश्वर भक्ति से भजने वाले के ही अंतःकरण में प्रत्यक्ष रूप से प्रकट होता है) हूँ॥29॥



अपि चेत्सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक्‌ ।
साधुरेव स मन्तव्यः सम्यग्व्यवसितो हि सः ॥9.30

api cētsudurācārō bhajatē māmananyabhāk.
sādhurēva sa mantavyaḥ samyagvyavasitō hi saḥ৷৷9.30৷৷


भावार्थ : यदि कोई अतिशय दुराचारी भी अनन्य भाव से मेरा भक्त होकर मुझको भजता है तो वह साधु ही मानने योग्य है, क्योंकि वह यथार्थ निश्चय वाला है। अर्थात्‌ उसने भली भाँति निश्चय कर लिया है कि परमेश्वर के भजन के समान अन्य कुछ भी नहीं है॥30॥



क्षिप्रं भवति धर्मात्मा शश्वच्छान्तिं निगच्छति ।
कौन्तेय प्रतिजानीहि न मे भक्तः प्रणश्यति ॥9.31

kṣipraṅ bhavati dharmātmā śaśvacchāntiṅ nigacchati.
kauntēya pratijānīhi na mē bhaktaḥ praṇaśyati৷৷9.31৷৷


भावार्थ : वह शीघ्र ही धर्मात्मा हो जाता है और सदा रहने वाली परम शान्ति को प्राप्त होता है। हे अर्जुन! तू निश्चयपूर्वक सत्य जान कि मेरा भक्त नष्ट नहीं होता॥31॥


मां हि पार्थ व्यपाश्रित्य येऽपि स्यु पापयोनयः ।
स्त्रियो वैश्यास्तथा शूद्रास्तेऽपि यान्ति परां गतिम्‌ ॥9.32

māṅ hi pārtha vyapāśritya yē.pi syuḥ pāpayōnayaḥ.
striyō vaiśyāstathā śūdrāstē.pi yānti parāṅ gatim৷৷9.32৷৷


भावार्थ : हे अर्जुन! स्त्री, वैश्य, शूद्र तथा पापयोनि चाण्डालादि जो कोई भी हों, वे भी मेरे शरण होकर परमगति को ही प्राप्त होते हैं॥32॥



किं पुनर्ब्राह्मणाः पुण्या भक्ता राजर्षयस्तथा ।
अनित्यमसुखं लोकमिमं प्राप्य भजस्व माम्‌ ॥9.33

kiṅ punarbrāhmaṇāḥ puṇyā bhaktā rājarṣayastathā.
anityamasukhaṅ lōkamimaṅ prāpya bhajasva mām৷৷9.33৷৷


भावार्थ : फिर इसमें कहना ही क्या है, जो पुण्यशील ब्राह्मण था राजर्षि भक्तजन मेरी शरण होकर परम गति को प्राप्त होते हैं। इसलिए तू सुखरहित और क्षणभंगुर इस मनुष्य शरीर को प्राप्त होकर निरंतर मेरा ही भजन कर॥33॥


मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु ।

मामेवैष्यसि युक्त्वैवमात्मानं मत्परायण: ॥9.34

manmanā bhava madbhaktō madyājī māṅ namaskuru.
māmēvaiṣyasi yuktvaivamātmānaṅ matparāyaṇaḥ৷৷9.34৷৷
भावार्थ : मुझमें मन वाला हो, मेरा भक्त बन, मेरा पूजन करने वाला हो, मुझको प्रणाम कर। इस प्रकार आत्मा को मुझमें नियुक्त करके मेरे परायण होकर तू मुझको ही प्राप्त होगा॥34॥


ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे
श्री कृष्णार्जुनसंवादे राजविद्याराजगुह्ययोगो नाम नवमोऽध्यायः ॥9॥
नाम

10th,2,12th,3,12th result,1,अक्षरब्रह्मयोग ~ अध्याय आठ ~ AksharBrahmaYog ~ Bhagwat Geeta Chapter 8,1,अम्बे जी की आरती,1,अर्जुनविषादयोग ~ भगवत गीता ~ अध्याय एक - Bhagwat Geeta Chapter 1,1,अष्टलक्ष्मी स्तोत्रम्,1,आज के इतिहास (History Today),366,आत्मसंयमयोग ~ अध्याय छः ~ AtmSanyamYog Bhagwat Geeta Chapter 6,1,आरती कुंज बिहारी की,1,आरती चालीसा,50,ईसाई धर्म,1,ऑनलाइन इनकम,14,करियर,10,कर्मयोग~ भगवत गीता ~ अध्याय तीन - Karmyog Bhagwat Geeta Chapter 3,1,कर्मसंन्यासयोग ~ अध्याय पाँच ~ KarmSanyasYog Bhagwat,1,कहानियाँ,5,कानून,2,कीर्ति खरबंदा,1,क्षेत्र-क्षेत्रज्ञविभागयोग ~ अध्याय तेरह ~ Ksetra-Ksetrajnay Vibhag Yog ~ Bhagwat Geeta Chapter 13,1,खान-पान,231,गणेश पञ्चरत्नं,1,गीता,19,गुणत्रयविभागयोग ~ अध्याय चौदह ~ GunTrayVibhagYog ~ Bhagwat Geeta Chapter 14,1,गुरुनानक गुरुजी के द्वारा हमे दी गयी शिक्षाएं,1,चुनाव,3,जगदीश जी की आरती,1,जीवन बीमा प्रश्नोत्तरी,2,जीवनी,2,ज्ञानकर्मसंन्यासयोग ~ अध्याय चार ~ GyanKarmSanyasYog Bhagwat Geeta Chapter 4,1,ज्ञानविज्ञानयोग ~ अध्याय सात ~ GnyanVignyanYog ~ Bhagwat Geeta Chapter 7,1,झांवी कॉमिक्स,12,टेक ज्ञान,1,त्योहार,1,देश,2,देश-विदेश,3,दैवासुरसम्पद्विभागयोग ~ अध्याय सोलह ~ DaiwaSurSampdwiBhagYog ~ Bhagwat Geeta Chapter 16,1,धर्म,2,नौकरी,15,न्यूज़,2,पढ़ाई,4,पुरुषो के लिए,1,पुरुषोत्तमयोग ~ अध्याय पंद्रह ~ PurushottamYog ~ Bhagwat Geeta Chapter 15,1,पूर्णिमा व्रत कथा,1,पौधे रोपण-खेतीबाड़ी,19,प्रश्नोत्तरी,12,फैशन,52,बच्चो के लिए,2,बच्चों के लिए,28,बागवानी,19,बिज़नस,1,बिजनेस फाइनेंस,21,बुद्ध धर्म,1,बैंक,1,बॉलीवुड,263,ब्लॉग,226,भक्तियोग ~ अध्याय बारह ~ BhaktiYog ~ Bhagwat Geeta Chapter 12,1,भगवत गीता,19,भगवत भगवान की आरती,1,भजन कीर्तन,44,भारतीय लोकतंत्र,2,भैरव जी की आरती,1,मज़ाक,1,मुस्लिम धर्म,3,मोक्षसंन्यासयोग ~ अध्याय अट्ठारह ~ MokshSanyasYog~ Bhagwat Geeta Chapter 18,1,योग,1,राजविद्याराजगुह्ययोग ~ अध्याय नौ ~ RajVidyaRajGuhyaYog ~ Bhagwat Geeta Chapter 9,1,रामायण,1,राशि उपाय,57,राशिफल 2017,1,लव लाइफ,3,लव स्टोरी,1,लिङ्गाष्टकम् स्तोत्रम्,1,लेखांकन,1,वास्तु शास्र,6,विडियो,1,विभूतियोग ~ अध्याय दस ~ VibhutiYog ~ Bhagwat Geeta Chapter 10,1,विश्वरूपदर्शनयोग ~ अध्याय ग्यारह ~ Vishwa Roop Darshan Yog ~ Bhagwat Geeta Chapter 11,1,वीडियो,4,वैज्ञानिक,1,व्यंजन रेसिपी,130,व्रत कथा,8,व्रत विधि व आरती,2,शाकम्भरी माता चालीसा,1,शिरडी साई बाबा चालीसा,1,शिरडी साई बाबा धूप आरती,1,शिव चालीसा,1,शिव जी की आरती,1,शेयर बाजार,1,श्रद्धात्रयविभागयोग ~ अध्याय सत्रह ~ Shraddha Tray Vibhag Yog ~ Bhagwat Geeta Chapter 17,1,श्री अन्नपूर्णा चालीसा,1,श्री अन्नपूर्णा माता की आरती,1,श्री काली माता की आरती,1,श्री काली माता चालीसा,1,श्री कृष्ण चालीसा,1,श्री गंगा चालीसा,1,श्री गंगा माता आरती,1,श्री गणेश चालीसा,1,श्री गणेश जी की आरती,1,श्री गायत्री चालीसा,1,श्री गायत्री माता की आरती,1,श्री चिंतपूर्णी देवी की आरती,1,श्री जीण चालीसा,1,श्री जीण माता की आरती,1,श्री दुर्गा चालीसा,1,श्री नवग्रह आरती,1,श्री नवग्रह चालीसा,1,श्री परशुराम चालीसा,1,श्री भैरव चालीसा,1,श्री मंगलवार व्रत कथा व्रत विधि व आरती,1,श्री रघुवर जी की आरती,1,श्री रविवार व्रत कथा,1,श्री राधाकृष्ण की आरती,1,श्री राम चालीसा,1,श्री रामचन्द्र जी की आरती,1,श्री लक्ष्मी माता की आरती,1,श्री लक्ष्मी माता चालीसा,1,श्री ललिता माता की आरती,1,श्री ललिता माता चालीसा,1,श्री विश्वकर्मा जी की आरती,1,श्री विश्वकर्मा जी चालीसा,1,श्री विष्णुशतनामस्तोत्रम्,1,श्री वीरभद्र चालीसा,1,श्री शनि देव चालीसा,1,श्री शनि देव जी की आरती,1,श्री सत्य नारायण व्रत कथा,1,श्री सन्तोषी माता की आरती,1,श्री सन्तोषी माता चालीसा,1,श्री सरस्वती चालीसा,1,श्री सरस्वती माता की आरती,1,श्री सोमवार व्रत कथा,1,श्री सोलह सोमवार व्रत कथा,1,श्रीराम रक्षा स्तोत्रम्,1,श्रीविष्णुसहस्रनामस्तोत्रम्‌,1,संकटनाशक गणेश स्तोत्र : प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्र विनायकम्,1,संस्कृत,1,सन्तान सप्तमी व्रत कथा,1,समाचार,36,समाचार चैनल LIVE,6,सांख्ययोग ~ भगवत गीता ~ द्वितीय दो - Bhagwat Geeta Chapter 2,1,साई बाबा की आरती,1,सामान्य ज्ञान,3,सालासर बालाजी की आरती,1,सिख धर्म,4,सोम प्रदोष व्रत कथा,1,स्तोत्र,7,हनुमान जी की आरती व चालीसा,1,हिन्दी सीखें,32,हिन्दू धर्म,70,हेल्थकेयर,10,हैल्थकेयर,363,Adjustment (समायोजन),21,Advance Tech (हिंदी में),5,age in banking,1,Armpits,1,Bank Reconciliation Statement (बैंक समाधान विवरण),11,banking for general class,1,Bhajan Kirtan,44,Bills of Exchange (विनिमय विपत्र),11,Business Studies (व्यवसाय),14,career,1,career development,1,Cash Book (रोकड़ बही),8,Company (कम्पनी),2,Depreciation (ह्रास),8,Diana Penty,1,Diana Penty bollywood,1,Diana Penty Desi Beuty,1,Diana Penty- desi daru,1,education,1,education in india,1,education standards,1,Entrepreneurship (उद्यमिता),26,Entrepreneurship (उद्यमिता),4,exam,1,exams.in.net,1,fail,1,Final Account (अंतिम लेखा लेखांकन),28,Finance (वित्त),2,general,1,Government Exam Practice Papers,2,GOVERNMENT EXAM PRACTICE PAPERS ANSWERS,1,govt jobs,1,indian god bhajans,44,Journal (रोजनामचा),16,Ketika Sharma Bollywood,1,Ledger (बही-खाता),11,Links,11,Management (प्रबन्ध),15,Offers,1,padai,1,poor education,1,Practice Test of IRDA (ic33 & ic 38),2,Quran,1,Rakul preet,9,Rakul Preet Beautiful Pics,1,Rectification of Errors (अशुद्धियों के सुधार),4,Rhea Chakarborty,1,sexy rakul preet,1,student life,1,Top Bhajans of all time,44,Trial Balance (संतुलन परीक्षण),9,
ltr
item
हिन्दी मेन - Hindi.Men: राजविद्याराजगुह्ययोग ~ अध्याय नौ ~ RajVidyaRajGuhyaYog ~ Bhagwat Geeta Chapter 9
राजविद्याराजगुह्ययोग ~ अध्याय नौ ~ RajVidyaRajGuhyaYog ~ Bhagwat Geeta Chapter 9
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgV2jkrlMb4f_EwBDPSNA98G8fDsT4c-5vd_uzIvwza7zlU8YYdc8uimNhDy42neAp8r79vr3HHomtFFvoBa3Vk1PuZhnRWlUy8nYoQZ9wMMvCLJqluYkP4538nxHRTmhSdZhrSOWCh5bzg/s320/images+%25284%2529.jpeg
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgV2jkrlMb4f_EwBDPSNA98G8fDsT4c-5vd_uzIvwza7zlU8YYdc8uimNhDy42neAp8r79vr3HHomtFFvoBa3Vk1PuZhnRWlUy8nYoQZ9wMMvCLJqluYkP4538nxHRTmhSdZhrSOWCh5bzg/s72-c/images+%25284%2529.jpeg
हिन्दी मेन - Hindi.Men
https://www.hindi.men/2019/07/rajvidyarajguhyayog-bhagwat-geeta.html
https://www.hindi.men/
https://www.hindi.men/
https://www.hindi.men/2019/07/rajvidyarajguhyayog-bhagwat-geeta.html
true
2264589015692803993
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS CONTENT IS PREMIUM Please share to unlock Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy