क्या सचमुच बर्बाद हो गई है हमारी अर्थव्यवस्था?

क्या सच में मंदी का दौर आ गया है? क्या वाक़ई अर्थव्यवस्था बर्बाद हो गई है और लोग सड़कों पर आ जाएँगे? या फिर ये सब लोगों को बरगलाने और डर ...


क्या सच में मंदी का दौर आ गया है? क्या वाक़ई अर्थव्यवस्था बर्बाद हो गई है और लोग सड़कों पर आ जाएँगे? या फिर ये सब लोगों को बरगलाने और डर भरने के लिए हो रहा है?

जब हम ‘रिसेशन’, ‘जीडीपी’, ‘बैंकिंग क्राइसिस’, ‘लेंडिंग-बॉरोइंग’ आदि शब्द सुनते हैं तो दिमाग घूम जाता है, क्योंकि इन शब्दों को हमारे जानकारों ने कभी भी सीधे तरीके से, आम आदमी की भाषा में समझाया ही नहीं। जब परिभाषा ही नहीं पता, और बाते फिर इन शब्दों के नाम पर पूरे देश की अर्थव्यवस्था के ऊपर-नीचे होने की हो रही हो, तो फिर आम आदमी मानने लगता है कि कुछ तो बुरा या अच्छा हो ही रहा है। उसे यह पता नहीं चलता कि आखिर ये ‘बुरा’ या ‘अच्छा’ है क्या। वह बस मान लेता है, क्योंकि उतने पर ही उसका वश है।


पहले रिसेशन की बात करें, जिसे हिन्दी में मंदी का दौर कहते हैं। यह दौर अगर थोड़ा लम्बा चले तब उसे खतरनाक मान सकते हैं। जैसे कि अगर जीडीपी, जो कि पूरे देश का एक तरह से मूल्य कह सकते हैं, अगर लगातार घटने लगे, या उसकी वृद्धि रुक जाए, या कम हो जाए, और साल भर ऐसे ही रुकी या घिसटती रहे तो कहा जाता है कि अर्थव्यवस्था में ‘मंदी’ आ गई है। और सरल शब्दों में कहा जाए तो इसे ऐसे देखिए कि आपके घर की हर वस्तु का मोल, आपके खेत का मोल, मवेशियों का मूल्य, आप जो कमाते हैं वो पैसा, यानि कि घर और परिवार की सारी चल और अचल संपत्ति के साथ आपके कौशल से आने वाले पैसों का मूल्य आपकी जीडीपी कही जाएगी।


हर साल आपकी जमीन, मवेशी और घर का मूल्य बढ़ता है, आपकी सैलरी भी बढ़ती है। इसे मानिए कि आपकी जीडीपी बढ़ रही है। लेकिन ये हमेशा एक तय तरीके से नहीं बढ़ती। कभी बाढ़ आने से आपकी जमीन डूब गई और खेती नहीं हुई, या घर में चोरी हो गई, या फिर आपकी कम्पनी ने अच्छा लाभ नहीं कमाया तो आपकी सैलरी में ज्यादा बढ़ोतरी नहीं हुई; कुल मिला कर जहाँ आपके बढ़ने की गति पिछले साल दस थी, अब आठ हो गई। फिर अगले तीन महीने कुछ और दिक्कत हो गई, आपकी गाड़ी खराब हो गई तो उसमें पैसे गए। गाय ने दूध देना कम कर दिया क्योंकि गर्मी बढ़ गई और चारे का इंतजाम नहीं हो पाया। उस तीन महीने आपकी जीडीपी की वृद्धि में फिर गिरावट आई। यही गिरावट अगर हर तीन महीने (तिमाही) पर जारी रहे, तो आपको सोचना पड़ेगा कि क्या किया जाए- नई नौकरी लें, किसी से ज्यादा जमीन लेकर खेती शुरू कर दें, या कुछ बेच कर कुछ और खरीदें, जिससे मुनाफा कमा सकें।

राष्ट्र के संदर्भ में भी कुछ यही होता है। अगर हर चौथाई साल या क्वार्टर, यानि तिमाही, में यह दर गिरती रहे, तब कहते हैं कि मंदी का दौर है। इस बात पर भी गौर कीजिए कि बढ़ अभी भी रही है, बस उसकी गति कम हो गई है। यानि सीधे तौर पर नुकसान नहीं हुआ है, लेकिन भविष्य में अगर कुछ नहीं किया गया तो होने वाले फायदे में कमी के कारण नुकसान होगा। इसलिए अभी की ग्रोथ रेट, यानि वृद्धि दर, को सही करने के लिए सरकार को कुछ कदम उठाने पड़ेंगे। ये कदम क्या होंगे, उस पर चर्चा थोड़ा आगे जाने पर हम करेंगे।


मनमोहन सिंह की कारगुजारी और उसके नुकसान
मनमोहन सिंह किसी तरह राज्यसभा में पहुँच गए हैं और अर्थव्यवस्था पर ज्ञान दिए जा रहे हैं। देना भी चाहिए क्योंकि ऑक्सफोर्ड से पढ़े हुए हैं। मनमोहन सिंह कहते हैं कि मोदी की नीतियों ने भारत को इस स्थिति में पहुँचाया है। लेकिन आँकड़े इस दावे के उलट कुछ और ही कहानी कहते हैं।
याद कीजिए 2008 का वह दौर, जब वैश्विक मंदी से पूरा विश्व जूझ रहा था। तत्कालीन भारत सरकार ने, यानि अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह जी ने, उस मंदी के असर से भारत को बचाने के लिए कुछ त्वरित उपाय किए। अब सवाल यह है कि मंदी से बचाने के उपाय क्या हैं?

मंदी के दौर में एक तो पूरी इकॉनमी धीमी होती ही है, दूसरी बात यह होती है कि आम आदमी इस डर से खर्च करना बंद कर देता है कि भविष्य में बुरा दौर आने वाला है तो बचाना ज़रूरी है। यानि वो बाहर खाना खाने में कमी करता है, सिनेमा नहीं देखने जाता, ऑटो या टैक्सी की जगह बस या मेट्रो से चलने लगता है, कपड़े कम खरीदता है, महंगा भोजन घर में कम बनवाता है। इससे इकॉनमी और मंद हो जाती है क्योंकि धीमी अर्थव्यवस्था को चलायमान रखने के लिए लोगों को पैसा खर्च करना होता है- वो खर्च नहीं करेंगे तो रेस्तराँ, सिनेमा, कमर्शियल गाड़ियाँ चलाने वाले लोगों का व्यवसाय कम होता है। यानि एक बार ‘मंदी’ की खबर फ़ैल जाने पर आम आदमी की सतर्कता मार्केट को और ‘मंदा’ करने लगती है।

फिर सरकार क्या करे? सरकार के सामने एक विकल्प होता है कि अपनी योजनाओं के माध्यम से लोगों तक पैसे पहुँचा दो। दूसरा तरीका है कि बैंकों को कहो कि लोगों को लोन दें, व्यापारियों को लोन दें, कम ब्याज दर पर दें। दोनों ही समाधान हालाँकि त्वरित होते हैं, लेकिन इनसे लोगों के हाथ में पैसा पहुँचता है, लोगों के बीच ‘सेंटिमेंट’ अच्छा बनता है और वो हाथ में आए पैसे को खर्च करना शुरू करते हैं।

यूँ तो यह प्रक्रिया और भी जटिल है, लेकिन मोटे तौर पर इसे ऐसे ही समझिए कि बैंक व्यवसाय करने वालों को पैसा देगी तो वो व्यवसायी उसे फैक्ट्री लगाने से लेकर छोटी कम्पनियों को खरीदने, अपने बिजनेस को बढ़ाने में लगाएँगे, जिससे रोजगार बढ़ेगा, लोगों को सैलरी मिलेगी, सैलरी से डिमांड बढ़ेगी और दूसरे उद्योगों पर इसका सकारात्मक असर पड़ेगा। साथ ही, अगर आपकी ग्रोथ रेट सही होगी तो बाहर से निवेश आने के भी मौके बेहतर होने लगते हैं।

इस दौर में मनमोहन सिंह की सरकार ने यही क्विक-फिक्स अपनाया कि थोड़े समय के लिए इकॉनमी सुधर जाए लेकिन लम्बे दौर में उसका असर दोबारा दिखने लगा है। यानि उन्होंंने लोगो को 
मच्छी खिलाई पर खुद मच्छी पकड़ना नहीं सिखाया। असल में यह होता है कि लोगों के पास आपने पैसे तो दे दिए, लेकिन उन्हें इस योग्य नहीं बनाया कि वो आगे भी पैसे कमाते रहें। आपने ईएमआई पर उसे गाड़ी दिलवा दी, तो ऑटो सेक्टर सही चल गया। लेकिन उस गाड़ी को वो चला भी नहीं पा रहा, क्योंकि आगे ईएमआई और ईंधन का पैसा कौन देगा? उसी तरह मनरेगा से, या फूड सिक्योरिटी एक्ट से, लोगों के खाने-पीने का इंतजाम तो हो गया लेकिन उनके लिए लगातार चलने वाला कोई काम नहीं मिला।

अंततः, इसका असर कुछ ऐसे हुआ कि लोगों के पास से पैसे फिर खत्म हो गए। आपने उसे मछली पकड़ना सिखाने की जगह मछली पकड़ कर दे दी। वो रात को मछली खा कर सो गया, और अगली सुबह फिर भूखा है। आपने वहाँ पहले स्किल डेवलप करने की जगह उसे सीधा इनाम दे दिया, पीठ ठोक दी और कहा ऐश करो। एक पूरी पीढ़ी बिना किसी खास स्किल के, सस्ते दरों पर गेहूँ-चावल पा कर, अपने आप को किसी लायक नहीं बना पाई क्योंकि आपने उसे पंगु और लाचार बनाए रखा। क्योंकि जब अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री और हार्वर्ड के पढ़े इकॉनमिस्ट अर्थव्यवस्था की बैंड बजाते हैं तो फिस्कल डेफिसिट का ख्याल नहीं करते। इसकी चर्चा आगे होगी।



बैंकिंग क्राइसिस और मनमोहन सिंह का दौर


एक आँकड़ा देखिए कि आजादी के बाद से लेकर साल 2008 तक, देश के बैंकों ने 18 लाख करोड़ रुपए की राशि ही लोन के तौर पर दी थी। लेकिन 2008 के बाद के 6 वर्षों में ये राशि बढ़कर 52 लाख करोड़ रुपए हो गई। 2008 का साल इसलिए जरूरी है क्योंकि इसी साल ‘रिसेशन’ आया था और भारत सरकार ने उसी साल से आने वाले समय के लिए नई क्राइसिस की नींव रख दी थी।

रिसेशन का चक्र होता है, और हर व्यवसाय की तरह यह आता और जाता रहता है। कई बार मंदी के दौर में आपकी नीतियों का हाथ नहीं होता, बल्कि वैश्विक व्यवस्था में नकारात्मक असर होने से, आपकी इकॉनमी भी उसका प्रभाव झेलती है। जैसे कि अभी अमेरिका और चीन लड़ रहे हैं, तो इसका असर भारत पर भी पड़ेगा। एप्पल और एमेजॉन जैसी कम्पनियाँ अब चीन से फैक्ट्री हटा कर भारत में लगाएँगी। लेकिन वो होने में समय है। उसी तरह, जब दो आर्थिक शक्तियाँ ऐसे उलझती हैं तो पूरे विश्व में एक चिंता का माहौल उपजता है, बड़ी कम्पनियाँ सोच में पड़ जाती हैं कि वो निवेश करें तो कहाँ करें, या इंतज़ार करें कि दो राष्ट्र अपनी नीतियाँ सही कर लें।

जब यही रिसेशन लम्बा खिंच जाता है तो उससे निपटने के लिए सरकार को या तो नीतियों में बदलाव करना होता है, या इंतज़ार कर उसका झटका सहन करते रहना होता है- या फिर कोई त्वरित समाधान दे कर अगले साल होने वाले चुनावों पर नजर रखनी होती है। मनमोहन सिंह के सलाहकारों ने चुनाव को देखते हुए 2008 के बाद एक ऐसी कमाल की युक्ति लगाई कि उनके पाप मोदी को धोने पड़ रहे हैं। जब बैंको ने 52 लाख करोड़ बाँट दिए और उसका एक बहुत बड़ा हिस्सा उसके पास वापस नहीं आया, तो बैंकों का व्यापार बुरी तरह से प्रभावित हुआ। बड़े व्यापारियों को लोन मिला मनमोहन काल में, रिकवरी के लिए गारंटी की कोई व्यवस्था नहीं, भागा वो मोदी काल में क्योंकि रोकने का कोई कानून ही नहीं था, और कटघरे में खड़ा होता है मोदी।

बैंकों के एनपीए बढ़ने से क्या होता है?

हर बैंक के पास अपनी पूरी पूँजी का एक तय प्रतिशत ही लोन के तौर पर देने का प्रावधान होता है। जैसे कि आपकी पूँजी सौ रुपए है, तो आप ₹40 तक लोगों को उधार दे सकते हैं। अब देखिए कि कोई माल्या या नीरव मोदी टाइप का आदमी आपसे बीस रुपया लेता है, और आपके पास अगले साल वो पैसा वापस नहीं आता, तो आपकी कुल जमा पूँजी बचती है 80 रुपए। तो इस साल आप सिर्फ 32 रुपए ही लोन पर देने के योग्य हैं। ऐसे ही आप अगले साल भी रिकवर नहीं कर पाते तो, आपका व्यवसाय डूबने लगता है। इसी से बैंकिंग में समस्या आती है और फिर वो लोगों को लोन देने की अवस्था में नहीं होते।

अब लोन नहीं मिलेगा तो नए लोग रोजगार नहीं बिठा सकते, घर बनाने में समस्या आ सकती है, कार खरीदने में दिक्कत हो सकती है। यानि कि बैंक के पास पैसे की कमी होती है, और वो इस बात से भी डरते हैं कि अगर वापस लोन दें, और रिकवरी न हो, तो फिर वो डूब जाएँगे। मतलब आम आदमी के हाथ में पैसे आने के स्रोत खत्म।

फिर आती है सरकार पिक्चर में। सरकार चाहे तो लोगों में पैसे बाँट दे। नई योजनाएँ बनाए, गरीबों के हाथ में जीने के लिए पैसे दे, बैंकों को इसलिए पैसे दे कि उनकी पूँजी बढ़े तो व्यापारियों को लोन दें। इससे अर्थव्यवस्था सही हो जाए। तो इसमें बुरा क्या है?

बुरा यह है कि जिस मनमोहन सिंह की सरकार में 2007-08 में देश की आमदनी और देश के खर्चे का अंतर, यानि फिस्कल डेफिसिट, जीडीपी का 2.5% था, वो अगले साल अचानक से 2008-09 में 6.2% और यूपीए-द्वितीय के पहले साल 2009-10 में 6.6% तक चला जाता है। यानि कमा रहे हैं 100 और खर्चा हो रहा है 107 रूपया। मनमोहन सिंह ने जो ये कदम उठाए उसे पाटने में अरुण जेटली तक आते-आते दो साल और लग गए।

आँकड़ों की बात करें तो 2010-11 में फिस्कल डेफिसिट 4.7% पर पहुँचा लेकिन अगले ही साल 2011-12 में यह वापस 6% की तरफ जाने लगा और 5.9% पर पहुंच गया। फिर, 2012-13 में यह 4.9% तक गिरा, 2013-14 में और गिर कर 4.5% हुआ। इसके बाद, 2014-15 में मोदी सरकार के एक साल में यह सामान्य टार्गेट के आस-पास पहुँचा जब यह फिस्कल डेफिसिट 4% से होते हुए, 2015-16 में 3.9%, और 2016-17 3.5% पर पहुँचा। ध्यान रहे यह वही साल था जब नोटबंदी हुई थी, और टैक्स कलेक्शन बढ़ने लगा था। भारत सरकार ने फिस्कल डेफिसिट का सामान्य टार्गेट 3.5% रखा है।

मोदी सरकार अगले साल 2017-18 में इस डेफिसिट को टार्गेट के पास 3.5% लाते हुए, अगले साल और नीचे करते हुए 3.4% पर ले आई। यह सब तब संभव हुआ जब पूरे देश में लगातार ढाँचागत काम चल रहे थे, बुलेट ट्रेन जैसी योजनाओं पर पैसे लग रहे थे, और आयुष्मान योजना जैसी लोककल्याणकारी योजना में बजट का बड़ा हिस्सा जा रहा था। भले ही, विरोधी इन सारी बातों को खारिज कर दें, लेकिन आँकड़े झूठ नहीं बोलते।

यह बात भी सत्य है कि इस वित्तीय वर्ष के पहले क्वार्टर में ही फिस्कल डेफिसिट के टार्गेट का 77% जा चुका है, जो कि बेशक चिंताजनक है, और यह अगली तिमाही में बहुत कम हो जाए इसकी आशा भी कम ही है। लेकिन, रिसेशन सिर्फ एक तिमाही की मंदी से नहीं आता। सरकार ने पिछले कुछ समय में अपने कुछ फैसलों से भ्रम की स्थिति उत्पन्न की है जिससे बाजार का सेंटीमेंट बुरा हुआ है और बिजनेस करने वाले असमंजस की स्थिति में हैं कि पैसा लगाएँ या नहीं। लेकिन, पिछले सप्ताह वित्त मंत्री ने उसमें सुधार लाने के लिए कुछ फैसलों को पलटा है, तो यह तय है कि सरकार इससे निपटने के लिए सक्रिय है।

वापस बात बैंकों और गैर-बैंकिंग वाले वित्तीय संस्थाओं की

बैंकिंग पर हमने देख लिया कि बैंक के पास अपनी पूँजी का एक तय हिस्सा ही लोन पर देने के लिए होता है, लेकिन NBFC (नॉन-बैंकिंग फायनेंशियल कम्पनी) का मुख्य कार्य ही लोन देना होता है। इन संस्थाओं को इसलिए बनाया गया ताकि व्यापारियों को बड़े लोन लेने में समस्या न हो। बैंकों पर लोन देने की सीमा होती है क्योंकि उसमें आम आदमी के पैसे होते हैं। अगर बैंक सारा पैसा लोन में दे कर डूब जाए तो आम लोगों के पैसे भी डूब जाएँगे जिससे विकट स्थिति उत्पन्न हो जाएगी।

इससे बचने को लिए NBFC का प्रावधान आया कि व्यवसायों को लोन देने के लिए ये कम्पनियाँ उनकी संपत्ति या पुराने रिकॉर्ड देख कर तय करे कि कितना लोन देना है, किस दर पर देना है, और कैसे वापस लेना है। इससे व्यापार चलता रहता है, नए लोग बिजनेस करते हैं, या पुराने लोग नए बिजनेस में घुसते हैं। इन कम्पनियों में रिस्क लेने की क्षमता ज्यादा होती है, तो बड़े लोन देने में ये आगे होतीं हैं।

इसमें भी क्राइसिस आ गई, क्योंकि लोग लोन लेकर या तो भाग गए, या उनका व्यापार उस तरह से नहीं चला, जैसा इन्होंने सोचा था। वापस 2008 में जाते हैं जहाँ बाजार में डिमांड क्रिएट करने के लिए सरकार ने बैंकों को पैसे देने शुरु किए ताकि रिसेशन से मुक्ति मिल सके, और चुनाव तक सेंटीमेंट खराब न हो। अगले छः सालों में 52 लाख करोड़ रुपए बैंकों ने लोन में दे दिए।

अब हुआ यह कि बिजनेस करने वालों के पास पैसे आए, उन्होंने फैक्ट्री लगाई। फैक्ट्री का प्रोडक्शन इस उम्मीद में ज्यादा रखा कि लोग खरीदेंगे। इससे सप्लाई में वृद्धि हुई, लेकिन डिमांड उतनी ज्यादा नहीं बढ़ी। जैसे कि टाटा ने जैगुआर को खरीद लिया, लेकिन उसकी कारें भारत में खरीदने वाले बहुत कम थे। बहुत कम इसलिए थे क्योंकि सरकार ने लोगों को चीजें खरीदने योग्य बनाने की जगह उन्हें लोन और ईएमआई उपलब्ध कराने पर ज्यादा जोर दिया।

इससे बिजनेस करने वालों को वांछित लाभ नहीं मिला और वो NBFC या बैंक से लिए लोन चुकाने में अक्षम रहे। यानि कि अब यही बैंकिंग और नॉन-बैंकिंग कम्पनियाँ अगले साल कम लोगों को लोन देगी, फिर डिमांड सही नहीं हुई, तो फिर रिकवरी नहीं हो पाएगी। इसका मतलब यह हुआ बैंकों का घाटा बढ़ता जाएगा। फिर वो स्थिति आएगी जब आप सारे कागज जुटा लेंगे, और वही बैंक आपको लोन नहीं देंगे जो पिछले साल फोन कर-कर के आपको पागल कर रहे थे। स्थिति बदल चुकी थी, क्योंकि बैंक लगातार घाटे में जा रहे थे।

यह परिस्थिति मोदी सरकार की देन नहीं है, बल्कि इसमें बैंकों ने अपने रिस्क पर अपना पैसा डुबाया है। जब आप बड़े लोन देते हैं तो आपके पास उसे वापस पाने के तरीके होने चाहिए। परसों एक रिपोर्ट आई कि बैंकों में फ्रॉड 74% बढ़ गया है, लेकिन यह बात आधा सत्य है। बैंकों में फ्रॉड की रिपोर्टिंग बढ़ी है क्योंकि पहले बैंक अपने व्यवसाय को सही दिखाने के लिए इस तरह के फ्रॉड को रिपोर्ट ही नहीं करते थे। अब रिजर्व बैंक ने सख्ती की है तो यह संख्या बढ़ गई है।
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10th,2,12th,3,12th result,1,अक्षरब्रह्मयोग ~ अध्याय आठ ~ AksharBrahmaYog ~ Bhagwat Geeta Chapter 8,1,अम्बे जी की आरती,1,अर्जुनविषादयोग ~ भगवत गीता ~ अध्याय एक - Bhagwat Geeta Chapter 1,1,अष्टलक्ष्मी स्तोत्रम्,1,आज के इतिहास (History Today),366,आत्मसंयमयोग ~ अध्याय छः ~ AtmSanyamYog Bhagwat Geeta Chapter 6,1,आरती कुंज बिहारी की,1,आरती चालीसा,50,ईसाई धर्म,1,ऑनलाइन इनकम,14,करियर,10,कर्मयोग~ भगवत गीता ~ अध्याय तीन - Karmyog Bhagwat Geeta Chapter 3,1,कर्मसंन्यासयोग ~ अध्याय पाँच ~ KarmSanyasYog Bhagwat,1,कहानियाँ,5,कानून,2,कीर्ति खरबंदा,1,क्षेत्र-क्षेत्रज्ञविभागयोग ~ अध्याय तेरह ~ Ksetra-Ksetrajnay Vibhag Yog ~ Bhagwat Geeta Chapter 13,1,खान-पान,231,गणेश पञ्चरत्नं,1,गीता,19,गुणत्रयविभागयोग ~ अध्याय चौदह ~ GunTrayVibhagYog ~ Bhagwat Geeta Chapter 14,1,गुरुनानक गुरुजी के द्वारा हमे दी गयी शिक्षाएं,1,चुनाव,3,जगदीश जी की आरती,1,जीवन बीमा प्रश्नोत्तरी,2,जीवनी,2,ज्ञानकर्मसंन्यासयोग ~ अध्याय चार ~ GyanKarmSanyasYog Bhagwat Geeta Chapter 4,1,ज्ञानविज्ञानयोग ~ अध्याय सात ~ GnyanVignyanYog ~ Bhagwat Geeta Chapter 7,1,झांवी कॉमिक्स,12,टेक ज्ञान,1,त्योहार,1,देश,2,देश-विदेश,3,दैवासुरसम्पद्विभागयोग ~ अध्याय सोलह ~ DaiwaSurSampdwiBhagYog ~ Bhagwat Geeta Chapter 16,1,धर्म,2,नौकरी,15,न्यूज़,2,पढ़ाई,4,पुरुषो के लिए,1,पुरुषोत्तमयोग ~ अध्याय पंद्रह ~ PurushottamYog ~ Bhagwat Geeta Chapter 15,1,पूर्णिमा व्रत कथा,1,पौधे रोपण-खेतीबाड़ी,19,प्रश्नोत्तरी,12,फैशन,52,बच्चो के लिए,2,बच्चों के लिए,28,बागवानी,19,बिज़नस,1,बिजनेस फाइनेंस,21,बुद्ध धर्म,1,बैंक,1,बॉलीवुड,262,ब्लॉग,226,भक्तियोग ~ अध्याय बारह ~ BhaktiYog ~ Bhagwat Geeta Chapter 12,1,भगवत गीता,19,भगवत भगवान की आरती,1,भजन कीर्तन,44,भारतीय लोकतंत्र,2,भैरव जी की आरती,1,मज़ाक,1,मुस्लिम धर्म,3,मोक्षसंन्यासयोग ~ अध्याय अट्ठारह ~ MokshSanyasYog~ Bhagwat Geeta Chapter 18,1,योग,1,राजविद्याराजगुह्ययोग ~ अध्याय नौ ~ RajVidyaRajGuhyaYog ~ Bhagwat Geeta Chapter 9,1,रामायण,1,राशि उपाय,57,राशिफल 2017,1,लव लाइफ,3,लव स्टोरी,1,लिङ्गाष्टकम् स्तोत्रम्,1,लेखांकन,1,वास्तु शास्र,6,विडियो,1,विभूतियोग ~ अध्याय दस ~ VibhutiYog ~ Bhagwat Geeta Chapter 10,1,विश्वरूपदर्शनयोग ~ अध्याय ग्यारह ~ Vishwa Roop Darshan Yog ~ Bhagwat Geeta Chapter 11,1,वीडियो,4,वैज्ञानिक,1,व्यंजन रेसिपी,130,व्रत कथा,8,व्रत विधि व आरती,2,शाकम्भरी माता चालीसा,1,शिरडी साई बाबा चालीसा,1,शिरडी साई बाबा धूप आरती,1,शिव चालीसा,1,शिव जी की आरती,1,शेयर बाजार,1,श्रद्धात्रयविभागयोग ~ अध्याय सत्रह ~ Shraddha Tray Vibhag Yog ~ Bhagwat Geeta Chapter 17,1,श्री अन्नपूर्णा चालीसा,1,श्री अन्नपूर्णा माता की आरती,1,श्री काली माता की आरती,1,श्री काली माता चालीसा,1,श्री कृष्ण चालीसा,1,श्री गंगा चालीसा,1,श्री गंगा माता आरती,1,श्री गणेश चालीसा,1,श्री गणेश जी की आरती,1,श्री गायत्री चालीसा,1,श्री गायत्री माता की आरती,1,श्री चिंतपूर्णी देवी की आरती,1,श्री जीण चालीसा,1,श्री जीण माता की आरती,1,श्री दुर्गा चालीसा,1,श्री नवग्रह आरती,1,श्री नवग्रह चालीसा,1,श्री परशुराम चालीसा,1,श्री भैरव चालीसा,1,श्री मंगलवार व्रत कथा व्रत विधि व आरती,1,श्री रघुवर जी की आरती,1,श्री रविवार व्रत कथा,1,श्री राधाकृष्ण की आरती,1,श्री राम चालीसा,1,श्री रामचन्द्र जी की आरती,1,श्री लक्ष्मी माता की आरती,1,श्री लक्ष्मी माता चालीसा,1,श्री ललिता माता की आरती,1,श्री ललिता माता चालीसा,1,श्री विश्वकर्मा जी की आरती,1,श्री विश्वकर्मा जी चालीसा,1,श्री विष्णुशतनामस्तोत्रम्,1,श्री वीरभद्र चालीसा,1,श्री शनि देव चालीसा,1,श्री शनि देव जी की आरती,1,श्री सत्य नारायण व्रत कथा,1,श्री सन्तोषी माता की आरती,1,श्री सन्तोषी माता चालीसा,1,श्री सरस्वती चालीसा,1,श्री सरस्वती माता की आरती,1,श्री सोमवार व्रत कथा,1,श्री सोलह सोमवार व्रत कथा,1,श्रीराम रक्षा स्तोत्रम्,1,श्रीविष्णुसहस्रनामस्तोत्रम्‌,1,संकटनाशक गणेश स्तोत्र : प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्र विनायकम्,1,संस्कृत,1,सन्तान सप्तमी व्रत कथा,1,समाचार,36,समाचार चैनल LIVE,6,सांख्ययोग ~ भगवत गीता ~ द्वितीय दो - Bhagwat Geeta Chapter 2,1,साई बाबा की आरती,1,सामान्य ज्ञान,3,सालासर बालाजी की आरती,1,सिख धर्म,4,सोम प्रदोष व्रत कथा,1,स्तोत्र,7,हनुमान जी की आरती व चालीसा,1,हिन्दी सीखें,32,हिन्दू धर्म,70,हेल्थकेयर,10,हैल्थकेयर,363,Adjustment (समायोजन),21,Advance Tech (हिंदी में),5,age in banking,1,Armpits,1,Bank Reconciliation Statement (बैंक समाधान विवरण),11,banking for general class,1,Bhajan Kirtan,44,Bills of Exchange (विनिमय विपत्र),11,Business Studies (व्यवसाय),14,career,1,career development,1,Cash Book (रोकड़ बही),8,Company (कम्पनी),2,Depreciation (ह्रास),8,Diana Penty,1,Diana Penty bollywood,1,Diana Penty Desi Beuty,1,Diana Penty- desi daru,1,education,1,education in india,1,education standards,1,Entrepreneurship (उद्यमिता),26,Entrepreneurship (उद्यमिता),4,exam,1,exams.in.net,1,fail,1,Final Account (अंतिम लेखा लेखांकन),28,Finance (वित्त),2,general,1,Government Exam Practice Papers,2,GOVERNMENT EXAM PRACTICE PAPERS ANSWERS,1,govt jobs,1,indian god bhajans,44,Journal (रोजनामचा),16,Ketika Sharma Bollywood,1,Ledger (बही-खाता),11,Links,11,Management (प्रबन्ध),15,Offers,1,padai,1,poor education,1,Practice Test of IRDA (ic33 & ic 38),2,Quran,1,Rakul preet,9,Rakul Preet Beautiful Pics,1,Rectification of Errors (अशुद्धियों के सुधार),4,Rhea Chakarborty,1,sexy rakul preet,1,student life,1,Top Bhajans of all time,44,Trial Balance (संतुलन परीक्षण),9,
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हिन्दी मेन - Hindi.Men: क्या सचमुच बर्बाद हो गई है हमारी अर्थव्यवस्था?
क्या सचमुच बर्बाद हो गई है हमारी अर्थव्यवस्था?
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