मुस्लिम भाइयो और तमाम हिन्दू भाई जो ईद के दिन मुस्लिम लोगो के साथ दावत बना रहे है कृप्या ध्यान दें। मिश्कात अल-मसाबिह; किताब 6; अध्याय...
मिश्कात अल-मसाबिह; किताब 6; अध्याय 7, 8:178 के मुताबिक जानवरो के साथ की जाने वाली क्रूरता भी उतना ही बड़ा पाप मानी जाती है जितनी मनुष्यों के साथ की गई क्रूरता. "एक जानवर के साथ किया गया अच्छा व्यवहार उतना ही सराहनीय है जितना कि एक इंसान के लिए किया गया एक अच्छा काम, जबकि एक जानवर के साथ क्रूरता उतनी ही बुरी है जितनी कि एक इंसान के साथ.''
ईद के त्यौहार और उनका इतिहास।
ईद-उल-फित्र
इस्लामी कैलेंडर के मुताबिक, साल में जो सबसे पहले ईद आती है, उसे ईद-उल-फित्र कहा जाता है। इस ईद को मीठी ईद या फिर सेवाइयों वाली ईद भी कहते हैं। यह ईद रमजान माह की समाप्ति के बाद रोज़ा खत्म होने के त्योहार के रूप में मनाई जाती है। पहली ईद उल-फित्र पैगंबर मुहम्मद ने सन् 624 ईस्वी में जंग-ए-बदर के बाद मनाया थी। यह ईद उन लोगों के लिए भी इनाम होती है, जिन्होंने पूरे महीने रोज रखे थे।इतिहास - ईद-उल-फित्र
पहली ईद उल-फितर पैगंबर मुहम्मद ने सन् 624 ईस्वी में जंग-ए-बदर के बाद मनाया थी। पैगंबर हजरत मोहम्मद ने बद्र के युद्ध में विजय प्राप्त की थी। उनके विजयी होने की खुशी में यह त्योहार मनाया जाता है। ईद के दिन मस्जिदों में सुबह की नमाज अदा करने से पहले हर मुसलमान का फर्ज है कि वो दान या जकात दे।
इस ईद में मुसलमान खुदा का शुक्रिया अदा इसलिए भी करते हैं कि उन्होंने महीनेभर के उपवास रखने की शक्ति दी। इस ईद पर एक खास रकम गरीबों और जरूरतमंदों के लिए निकाल दी जाती है। इस दान को जकात उल-फित्र कहते हैं। नमाज के बाद परिवार में सभी लोगों का फितरा दिया जाता है।
ईद-उल-अजहा (बकरीद या ईद-उल जुहा)
ईद-उल-अजहा, मीठी ईद के ढाई महीने बाद आती है। ईद-उल-अजहा को बकरीद भी कहा जाता है। इसे ईद-ए-कुर्बानी भी कहा जाता है क्योंकि इस दिन नियमों का पालन करते हुए कुर्बानी दी जाती है। इसे कुर्बानी की ईद और सुन्नत-ए-इब्राहिम भी कहते हैं क्योंकि इस त्योहार की शुरुआत हजरत इब्राहिम से हुई थी।इतिहास - ईद-उल-अजहा (बकरीद)
ईद-उल-अजहा की शुरुआत के बारे में धार्मिक मान्यता है कि एक बार खुदा ने ख्वाब में आकर इब्राहिम से अपनी सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी मांगी थी। खुदा का हुक्म मानते हुए इब्राहिम अपने बेटे की कुर्बानी देने चल दिए। इब्राहिम जब अपने बेटे की बलि देने लगे तो उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली। जब पट्टी खोली तो उनका बेटा जिंदा खड़ा था बेटे की जगह दुंबा (भेड़ जैसा एक जानवर) की कुर्बानी चली गई। तभी से कुर्बानी देने की रिवाज चल पड़ा।पैगंबर मुहम्मद ने लोगों को सही रास्ता दिखाया।
पैगंबर मुहम्मद ने जानवरों की पिटाई और ब्रांडिंग की निंदा की थी। उन्होंने उन लोगों को सही रास्ता दिखाया जिन्होंने जानवरों के साथ दुर्व्यवहार किया. खेल और मनोरंजन के लिए जानवरों का शिकार करना और उनकी हत्या करना भी प्रतिबंधित है. और अगर पशु क्रूरता का शिकार होता है तो उसके मांस को घृणित माना जाता है।इस्लाम में मंद चाकू और जानवरों का एक-दूसरे को देखना इस्लाम में प्रतिबंधित है, लेकिन आजकल बूचड़खानों में आम है. बुखारी और मुस्लिम संग्रह में कहा गया है कि
"जो कोई भी ईश्वर की रचना के प्रति दयालु है,
वह खुद के प्रति दयालु है"
पर्यावरण वैज्ञानिक की चेतावनी
आज, पर्यावरण वैज्ञानिक हमें चेतावनी देते हैं कि मांस, अंडा और डेयरी उत्पादन पर्यावरण को नष्ट कर रहे हैं. हर साल अरबों जानवरों की फार्मिंग से इतनी ग्रीनहाउस-गैस का उत्सर्जन होता है जितना कि पूरे विश्व के परिवहन उद्योग से. हालिया रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि मांस और डेयरी कंपनियां तेल उद्योग को पछाड़ते हुए दुनिया के सबसे बड़े प्रदूषक के रूप में स्थापित हो जाएंगी।
ईद ए मिलाद (मीलाद उन-नबी)
ईद ए मिलाद उन नबी का त्योहार को पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के जन्म की खुशी में मनाया जाता है।मुसलमानों के लिए बड़ा त्योहार माने जाने वाले इस दिन को लेकर मुस्लिम समाज में अलग-अलग मत है। शिया और सुन्नी इस दिन को लेकर अपने अपने मत रखते हैं लेकिन मनाने वाले इस दिन को बड़े धूम-धाम से मनाते है।
इस दिन रात भर प्रार्थनाए चलती हैं। पैगंबर मोहम्मद के प्रतीकात्मक पैरों के निशान पर प्रार्थना की जाती है। इस दिन बड़े-बड़े जुलूस भी निकाले जाते हैं। इस दिन पैगंबर मोहम्मद हजरत साहब को पढ़ा जाता है और उन्हें याद किया जाता है।
इस्लाम का सबसे पवित्र ग्रंथ कुरान भी इस दिन पढ़ा जाता है। इसके अलावा लोग मक्का मदीना और दरगाहों पर जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन को नियम से निभाने से लोग अल्लाह के और करीब जाते हैं और उनपर अल्लाह की रहम होती है।
इतिहास - ईद ए मिलाद (मीलाद उन-नबी)
ईद ए मिलाद उन नबी का त्योहार को पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के जन्म की खुशी में मनाया जाता है। पैगंबर हजरत मोहम्मद आखिरी संदेशवाहक और सबसे महान नबी माने जाते थे। जिन को खुद अल्लाह ने फरिश्ते जिब्रईल द्वारा कुरान का सन्देश दिया था। मुस्लिम इनके लिए हमेशा परम आदर भाव रखते हैं।
पैगंबर मुहम्मद ने जानवरों की पिटाई और ब्रांडिंग की निंदा की थी। उन्होंने उन लोगों को सही रास्ता दिखाया जिन्होंने जानवरों के साथ दुर्व्यवहार किया। खेल और मनोरंजन के लिए जानवरों का शिकार करना और उनकी हत्या करना भी प्रतिबंधित है। और अगर पशु क्रूरता का शिकार होता है तो उसके मांस को घृणित माना जाता है।
पैगंबर मुहम्मद की मुस्लिम समाज में वैसे ही इज़्ज़त दी जाती है जैसे की स्वामी विवेकानंद जी को हिन्दुओ में क्योकि दोनों ने ही मानव जीवन को अन्धविश्वास से दूर कर एक अच्छा इंसान बनाने का प्रयास किया है।