कपूर Kapoor तेज गंध युक्त सफ़ेद रंग का मोम जैसा पदार्थ होता है। अंग्रेजी में इसे कैम्फर Camphor कहते है। कपूर कैसे बनता है और कितने ...
कपूर Kapoor तेज गंध युक्त सफ़ेद रंग का मोम जैसा पदार्थ होता है। अंग्रेजी में इसे कैम्फर Camphor कहते है।
कपूर कैसे बनता है और कितने प्रकार का होता है
camphor , kapoor kya he
कपूर प्राकृतिक रूप से कपूर के पेड़ से प्राप्त होता है। इसे कृत्रिम रूप से रासायनिक विधि से भी बनाया जाता है। बाजार में मिलने वाला kapoor कई प्रकार का हो सकता है।
प्राकृतिक कपूर – Natural Camphor
पेड़ से मिलने वाला कपूर जापानी कपूर Japani Kapoor तथा भीमसेनी कपूर Bhimseni Kapoor के नाम से जाना जाता है।
जापानी कपूर – Japani Kapoor
यह kapoor सिनेमोमम केम्फोरा ( Cinnamomum camphora ) नामक पेड़ से प्राप्त होता है। यह पेड़ चीन , जापान , कोरिया तथा ताइवान में अधिक पाया जाता है। भारत में इसे देहरादून , सहारनपुर , मैसूर आदि स्थानों पर kapoor के लिए उगाया जाया है।
इस पेड़ की पत्तियां चमकदार होती है और उनसे कपुर की खुशबु आती है। इस पेड़ पर सफ़ेद रंग के फूल गुच्छे में लगते हैं। इस पेड़ की लकड़ी या पत्तीयों के आसवन से kapoor प्राप्त किया जा सकता है।
भीमसेनी कपूर – Bhimseni Kapoor
यह कपूर एक अलग प्रकार के पेड़ से प्राप्त होता है जो सुमात्रा में अधिक पाया जाता है। इस पेड़ की लकड़ी में चीरों के बीच यह होता है जिसे खुरच कर निकाला जाता है। यह जापानी kapoor जैसा ही होता है। इसे पानी में डालने पर यह डूब जाता है।
आयुर्वेदिक दवाओं के लिये यह कपुर अच्छा माना जाता है। बाजार में भीमसेनी कपुर के नाम से मिलने वाला kapoor असली हो यह जरुरी नहीं अतः इसे विश्वास वाली जगह से ही लेना चाहिए।
विश्व में सबसे अधिक प्राकृतिक कपुर Natural Camphor का उत्पादन करने वाला देश ताईवान है।
कृत्रिम कपूर – Artificial Kapoor
कृत्रिम कपूर तारपीन के तेल से बनाया जाता है। kapoor का रासायनिक फार्मूला C10-H16-O है। तारपीन के तेल के साथ कई प्रकार की रासायनिक क्रिया द्वारा kapoor बनाया जाता है।
इसका उपयोग कई प्रकार के प्लास्टिक और पेंट बनाने में होता है है। दर्द निवारक त्वचा पर लगाई जाने वाली क्रीम या बाम आदि में भी इसका उपयोग किया जाता है। कपुर पानी में नहीं घुलता। तेल या अल्कोहोल में यह घुल जाता है।
कपूर के उपयोग – Uses of camphor
इसे पूजा , आरती या हवन करते समय जलाया जाता है। कुछ दवाओं में इसका उपयोग होता है। दर्द और जुकाम आदि में काम आने वाले बाम में इसे मिलाया जाता है। इसके अलावा कीड़े मकोड़े दूर रखने के लिए भी कपुर का उपयोग होता है। दक्षिण भारत में कुछ विशेष प्रकार के भोजन में इसे डाला जाता है।
कपूर के नुकसान – Side effects of kapoor
— कपूर की अधिक मात्रा पेट में जाने पर नुकसान देह हो सकती है। इससे त्वचा में रेशेज , होठ सूखना , पाचन , किडनी या साँस की परेशानी हो सकती है। अतः चिकित्सक की सलाह के बिना ज्यादा कपुर पेट में नहीं जाना चाहिए।
— छोटे बच्चों को इससे दूर रखना चाहिए। उनके लिए यह अधिक नुकसान देह हो सकता है।
— गर्भावस्था में तथा स्तनपान कराने वाली महिला को कपुर का उपयोग नहीं करना चाहिए।
कपूर के फायदे – Kapoor Benefits
— ऊनी या रेशमी कपड़ो के साथ एक पोटली में कपुर रखने से कपड़ों में कीड़े नहीं पड़ते।
— चारपाई के पायों पर कपुर की पोटली बांधने से खटमल नहीं होंगे।
— रात को सोते समय नारियल के तेल में कपुर मिला कर सिर में लगा लें। सुबह शेम्पू कर लें। इससे सिर की जुएँ मरकर निकल जाती हैं।
— कपूर को पीस कर नींबू के रस में मिलकर सिर पर लगाने से सिरदर्द दूर होता है।
— जुकाम के कारण नाक बंद हो तो कपुर पूर सूंघने से खुल जाती है।
— चांदी के बर्तन आदि को काला पड़ने से बचाने के लिए उनके साथ कपुर रख देना चाहिए। चांदी काली नहीं पड़ती।
— रसोई में मक्खी ज्यादा हों तो लोहे की गरम वस्तु पर कपुर रखने से मक्खियां भाग जाती हैं।
— लालटेन में मिट्टी के तेल के साथ कपुर डालें। रौशनी अच्छी होगी और तेल कम जलेगा।
— चीनी के डिब्बे में चींटियां आती हों तो कपड़े में कपुर बांध कर डिब्बे में रखने से चींटियां आनी बंद हो जाती हैं।
— रजाई या गद्दा बनवाते समय उसमे कपुर रखवाने से उनमे खटमल नहीं होते। नींद अच्छी आती है।
— कपुर जलाने से वातावरण शुद्ध होता है। हानिकारक बैक्टीरिया नष्ट हो जाते हैं।
— कपुर जलाने से नींद अच्छी आती है तनाव दूर होता है। नकारात्मक ऊर्जा नष्ट होती है तथा सकारात्मक ऊर्जा में बढ़ोतरी होती है।
— अमृतधारा औषधि बनाने में कपुर का उपयोग होता है।
— पितृदोष निवारण के लिए कुछ लोग कपुर जलाने की सलाह देते हैं ।