मोहन सिंह (1909–1989) भारतीय सेना के अधिकारी एवं भारतीय स्वतंत्रता के महान सेनानी थे। वे द्वितीय विश्वयुद्ध के समय दक्षिण-पूर्व ...
मोहन सिंह (1909–1989) भारतीय सेना के अधिकारी एवं भारतीय स्वतंत्रता के महान सेनानी थे।
वे द्वितीय विश्वयुद्ध के समय दक्षिण-पूर्व एशिया में प्रथम भारतीय राष्ट्रीय सेना (Indian National Army) संघटित करने और इसका नेतृत्व करने के लिए प्रसिद्ध हैं।
द्वितीय विश्वयुद्ध में सुभाष चन्द्र बोस द्वारा रचित भारतीय राष्ट्रीय सेना (Indian National Army) ने अंग्रेज़ो के खिलाफ करो या मरो की ठानी और जर्मनी की तरफ से लड़ने का फैंसला किया और अंग्रेजो को उनकी औकात याद दिलाई।
मोहन सिंह के नेतृत्व में पूरी सेना उस समय के पुराने हथियारों के साथ जो की अंग्रेजो के अत्याधुनिक हथियारों के सामने कुछ नहीं थे जानते हुए भी युद्ध में कफ़न बाँध कर उतर गए।
भारतीय राष्ट्रीय सेना (Indian National Army) मे 45000 भारतीय सैनिक थे और सभी ने अपने देश के लिए शहीद होने की ठानी थी।
जर्मनी सेना के मुखिया हिटलर ने इनाम में भारतीय राष्ट्रीय सेना (Indian National Army) और मोहन सिंह को अत्य आधुनिक हतियारो से लैस कर दिया। इससे जर्मन ने भारत की सैनिको को धन्यवाद् के साथ साथ अपने देश के लिए कफ़न बांधे खड़ी भारतीय सैनिकों के जरिये भारत में अंग्रेजी हुकूमत को डराना और नुक्सान पहुचाना था।
1942 में कांग्रेस ने भारत छोड़ो आन्दोलन की एक तरफ तोह घोषणा की वही दूसरी तरफ अघोषित रूप से ब्रिटेन के पक्ष में और जर्मनी आदि धूरी राष्ट्रों के विरुद्ध काम करती रही।
मुस्लिम लीग ने ब्रिटिश युद्ध के प्रयासों का पुुुरा समर्थन किया।
अंग्रेजो (मित्र-सेना-बलों) की तरफ से भी भारत के कुल 25,00,000 (25लाख) से अधिक सैनिको को जापान, जर्मनी और बाकि देशो से लड़ने भेजा गया था। क्योंकि कांग्रेस और मुस्लिम लीग को इससे कोई आपत्ति नहीं की थी।
जापान ने भारत से उनके खिलाफ लड़ने आए सैनिक जिन्हें दिल से अंग्रेजो के खिलाफ लड़ने इच्छा थी को बंधी बना लिया और समझा बुजा कर सुभाष चन्द्र बोस की भारतीय राष्ट्रीय सेना (Indian National Army) में शामिल कर लिया।
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान मित्र-सेना-बलों में भारतीय सेना सबसे बड़ी सेना थी। इसने उत्तर और पूर्वी अफ्रीकी अभियान, पश्चिमी रेगिस्तान अभियान में भाग लिया था। जब यह विश्वयुद्ध अपने चरम पर था तब 25 लाख से अधिक भारतीय सैनिक पूरे विश्व में अक्षीय-राष्ट्रों की सेनाओं से लड़ रहे थे।
युद्ध की समाप्ति पर, भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी औद्योगिक शक्ति के रूप में उभरा था।
युद्ध की समाप्ति के बाद एक तरफ तोह मज़बूत हो चुकी भारतीय राष्ट्रीय सेना (Indian National Army) थी और दूसरी तरफ मित्र-सेना-बलों (United Nations) की तरफ से भारत लौट रही सेना जो सुभाष चन्द्र बोस के खिलाफ लड़ने को तैयार नहीं थी लौट रही थी।
अंग्रेजो के लिए अपना देश को बचाना या फिर एशिया के देशों से सेना वापिस बुला कर उन्हें आज़ाद करना में से एक फैसला लेना था। क्योकि आर्थिक और सैन्य शक्ति का द्वितिय विश्व युद्ध के बाद भरी नुक्सान हुआ था और उन्होंने अपने घर यानि ब्रिटिश को बचाना सही समझा।
मोहन सिंह भारत के आधिकारिक रूप से स्वतंत्र होने पर राज्य सभा के सदस्य बनाए गए।