हिंदू धर्म में सकट चौथ का विशेष महत्व है। इसे संकष्टी चतुर्थी, विनायक चतुर्थी, वक्रतुण्डी चतुर्थी और तिलकुटा पर्व के नाम से भी जाना जाता है।...
हिंदू धर्म में सकट चौथ का विशेष महत्व है। इसे संकष्टी चतुर्थी, विनायक चतुर्थी, वक्रतुण्डी चतुर्थी और तिलकुटा पर्व के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार सकट चौथ के दिन गौरी पुत्र गणेश जी की पूजा करना फलदायी माना जाता है। इस दिन माताएं अपनी संतान की सुखी, स्वस्थ और दीर्घायु की कामना के लिए निर्जला व्रत कर भगवान गणेश की पूजा अर्चना करती हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सकट चौथ के दिन विघ्नहर्ता भगवान गणेश जी की पूजा अर्चना करने से निसंतान को संतान की प्राप्ति होती है और संतान संबंधी सभी समस्याओं का निवारण होता है।
वैसे तो संकष्टी चतुर्थी का पर्व हर महीने पड़ता है, लेकिन शास्त्रों के अनुसार माघ माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया को यानी पूर्णिमा के बाद पड़ने वाले संकष्टी चतुर्थी का अलग ही महत्व है। इस बार सकट चौथ का पावन पर्व 21 जनवरी 2022, शुक्रवार को है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन शाम को सकट चौथ की कथा सुन चंद्रदेव को अर्घ्य देने से संतान के जीवन में आने वाली सभी विघ्न बाधाओं का अंत होता है। स्कंद पुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार बिना व्रत का पाठ किए पूजा को संपूर्ण नहीं माना जाता हैं।
सकट चौथ की व्रत कथा (sakat chauth vrat katha in hindi)
सकट चौथ को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। एक बार भगवान शिव और माता पार्वती नर्मदा नदी के तट पर बैठे थे। तभी माता पार्वती ने भोलेनाथ से समय व्यतीत करने के लिए चौपड़ खेलने को कहा। मां पार्वती के आग्रह पर भगवान शिव चौपड़ खेलने के लिए तैयार हो गए, परंतु इस खेल में हार जीत का फैसला कौन करेगा यह प्रश्न उठा।
ऐसे में भगवान शिव ने कुछ तिनका एकत्रित कर उसका पुतला बनाकर उसकी प्राण प्रतिष्ठा की और पुतले से कहा हम चौपड़ खेलना चाहते हैं, लेकिन हमारी हार जीत का फैसला करने वाला यहां कोई नहीं है। इसलिए तुम्हें बताना होगा कि हम में से कौन जीता और कौन हारा। यह कहने के बाद खेल शुरु हो गया और संयोगवश तीनों बार माता पार्वती जीत गई। खेल खत्म होने पर भगवान शिव ने बालक से हार जीत का फैसला करने के लिए कहा। बालक ने भगवान शिव को विजयी बताया।
यह सुन माता पार्वती अत्यंत क्रोधित हो गई और क्रोध में आकर उन्होंने बालक को लंगड़ा होने और कीचड़ में पड़े रहने का श्राप दे दिया। माता पार्वती का क्रोध देखकर पुतला भयभीत हो गया और उसने अपने कृत्य के लिए मां पार्वती से माफी मांगी। बालक के क्षमा मांगने पर मां पार्वती काफी भावुक हो गई और उन्होंने इस श्राप से निजात पाने का उपाय बताया।
उन्होंने कहा कि यहां गणेश पूजन के लिए नाग कन्याएं आएंगी, उनके कहे अनुसार तुम भी गणेश पूजन करो। ऐसा करने से तुम मुझे प्राप्त करोगे। यह कहकर मां पार्वती भगवान शिव के साथ कैलाश पर्वत पर चली गई। ठीक एक वर्ष बाद उस स्थान पर नाग कन्याएं आई, नाग कन्याओं से बालक ने विघ्नहर्ता भगवान गणेश के व्रत और पूजन की विधि पूछा। पूजा विधि जानने के बाद उस बालक ने लगातार 21 दिन तक गणेश जी का व्रत और पूजन किया। उसकी भक्ति भाव से प्रसन्न होकर गणेश जी ने उस बालक को साक्षात दर्शन दिया और मनोवांछित फल मांगने को कहा।
बालक ने कहा विनायक मुझे इतनी शक्ति दीजिए कि मैं अपने पैरों से चलकर अपने माता पिता के साथ कैलाश पर्वत पर पहुंच सकूं और वह देखकर प्रसन्न हो सकें। कैलाश पर्वत पर पहुंचने के बाद बालक ने अपनी कथा भगवान शिव को सुनाई।
चौपर वाले दिन से मां पार्वती भोलेनाथ से नाराज हो गई थी। ऐसे में भगवान शिव ने भी बालक के बताए अनुसार 21 दिनों तक गणेश जी का व्रत और पूजन किया, इस व्रत के प्रभाव से माता पार्वती के मन में भगवान शिव के प्रति जो नाराजगी थी वो दूर हो गई। इसके बाद सकट चौथ की व्रत विधि भगवान शिव ने माता पार्वती को बताया।
माता पार्वती के मन में भी अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा हुई, कार्तिकेय से मिलने के लिए माता पार्वती ने विघ्नहर्ता भगवान जी का व्रत और पूजन किया। व्रत के 21वें दिन कार्तिकेय स्वयं माता पार्वती से मिलने आ गए।
सकट चौथ की व्रत कथा (Bhagwan Ganesh Birth story for Sakat Chauth Varat)
पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव के बहुत सारे दूत थे, वे भगवान शिव और माता पार्वती दोनों की आज्ञा का पालन करते थे। लेकिन माता पार्वती ने सोचा की कोई ऐसा होना चाहिए जो केवल उनकी बातों का पालन करे। ऐसे में माता पार्वती ने अपने उबटन से एक बालक की आकृति बनाई और उसकी प्राण प्रतिष्ठा की, ये बालक माता पार्वती के पुत्र भगवान गणेश कहलाए। इन सब के बारे में भगवान शिव को पता नहीं था। जब माता स्नान करने के लिए गई तो उन्होंने बालक को द्वार पर खड़ा कर दिया और कहा कि उनकी आज्ञा के बिना किसी को भी अंदर ना आने दें।
तभी भगवान शिव वहां पहुंचे, बालक ने उन्हें द्वार पर रोक दिया और अंदर जाने से मना कर दिया। इसे देख शिव जी क्रोधित हो उठे, भोलेनाथ को क्रोधवश देख सभी देवतागण कैलाश पर्वत पर जा पहुंचे और गणेश जी को द्वार से हटाने की कोशिश करने लगे, लेकिन सभी इसमें नाकामयाब रहे। इसे देख शिव जी ने क्रोध में आकर त्रिशूल से गणेश जी का सिर धड़ से अलग कर दिया। अपने पुत्र की ये हालत देख माता पार्वती ने क्रोधित होकर नव दुर्गा का रूप धारण कर विनाश का संकेत दे दिया। सभी देवतागण मां पार्वती का यह रूप देख चिंतित हो उठे और बालक को पुनर्जीवित करने के लिए विचार करने लगे। देवतागण की विनती के बाद महादेव ने बालक को गज का सिर लगाकर जीवित किया, जिससे भगवान गणेश गजानन कहलाए।
तिलकुट् चौथ वृत कथा (tilkut chauth vrat katha)
पौराणिक कथाओं के अनुसार सतयुग में राजा हरीशचंद्र के राज्य में एक कुम्हार था। जब भी वह बर्तन बनाता था उसके बर्तन कच्चे रह जाते थे, ऐसे में वह अपनी समस्या लेकर एक पुजारी के पास जा पहुंचा। पुजारी की सलाह पर उसने इस समस्या को दूर करने के लिए एक छोटे बालक को मिट्टी के बर्तनों के साथ आंवा में डाल दिया। उस दिन सकट चौथ का व्रत था, बच्चे की मां ने विघ्नहर्ता भगवान गणेश जी से बच्चे की कुशलता के लिए प्रार्थना की। अगले दिन जब कुम्हार ने सुबह उठकर आंवा में देखा तो बर्तन पक गए थे और बच्चे को एक खरोंच भी नहीं आई थी। इस दिन से लोग संतान की सुख समृद्धि के लिए सकट चौथ या संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखते हैं।
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