दशहरा को विजयदशमी के नाम से भी जाना जाता है. विजयदशमी दरअसल, दो शब्द ‘विजय’ और ‘दशमी’ से मिलकर बना है. विजय का अर्थ जीत और दशमी का अर्थ होता...
दशहरा को विजयदशमी के नाम से भी जाना जाता है. विजयदशमी दरअसल, दो शब्द ‘विजय’ और ‘दशमी’ से मिलकर बना है. विजय का अर्थ जीत और दशमी का अर्थ होता है दसवां दिन. यानी दशमी को प्राप्त होने वाला विजय. नवरात्रि के नौ दिन मां दुर्गा की पूजा करने के बाद दसवें दिन विजयदशमी मनाई जाती है, यह एक तरह से बुराई पर अच्छाई का प्रतीक है. ‘दशहरा’ शब्द संस्कृत के दो शब्दों से मिलकर बना है, ‘दशा’ और ‘हरा’. इन दोनों शब्द का अर्थ होता है दस और हराना.
दशहरा अश्विन माह के शुक्ल पक्ष के 10वें दिन मनाया जाता है. इसे देश के विभिन्न राज्यों में धूमधाम से मनाया जाता है. खासतौर से पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा का उत्सव नवरात्रि के 6वें दिन से ही शुरू हो जाता है और विजयदशमी तक चलता है. दशमी के दिन दुर्गा विसर्जन होता है.
ऐसी मान्यता है कि मां दुर्गा नौ दिन और नौ रातों तक असुर महिषासुर से युद्ध करती रहीं और दसवें दिन उन्होंने महिषासुर का वध कर दिया. इसलिए नवरात्रि के दसवें दिन को विजयदशमी के रूप में मनाया जाता है.
उत्तर भारत में दशहरा के दिन रावण के पुतले को जलाया जाता है. रावण के साथ भाई कुंभकरण और बेटे मेघनाद के पुतले को भी जलाया जाता है. इसके साथ यह कहानी है कि भगवान राम ने रावण को मारकर आज ही के विजय प्राप्त किया था. इसे बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में भी देखा जाता है.
दशहरा के दिन राम लीला का भी चलन है. लोग दशहरा से कुछ दिन पूर्व ही रामलीला शुरू कर देते हैं और रामायण कथा का मंचन करते हैं. इसे देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग एकत्रित होते हैं.
दशहरा के दिन शमी पूजा का महत्व बहुत अधिक है। यह विजयदाशमी दिवस पर किए जाने वाले महत्वपूर्ण अनुष्ठानों में से एक है। हिन्दू परंपराओं में दशहरा पर शमी पूजन का पौराणिक महत्व रहा है। परंपरागत रूप से शमी पूजा क्षत्रिय और राजाओं द्वारा की जाती थी। आज भी यह परंपरा कायम है। ऐसी मान्यता है कि इस पूजन से सारी धन संबंधी समस्याएं दूर होती है। लेकिन किसी भी शामी पेड़ जो शहर या शहर के उत्तर-पूर्व में स्थित है, उसकी पूजा की जा सकती है। शमी पेड़ को कुछ क्षेत्रों में छोंकर पेड़ भी कहा जाता है। यदि शमी का पेड़ नहीं मिले तो पूजा के लिए अशमंतक (अभमन्तक) पेड़ का उपयोग किया जा सकता है। अशमंतक पेड़ को बाहेडा पेड़ भी कहा जाता है। भारत में कुछ दक्षिणी राज्यों में शमी पूजा को बनी पूजा और जमी पूजा भी कहा जाता है। श्रद्धालु दशहरा की शाम को शमी वृक्ष का पूजन कर उससे आशीर्वाद प्राप्त करते है। इस परंपरा के पीछे शमी वृक्ष का महत्व छुपा है। दशहरे के दिन शमी वृक्ष की पूजा करने के बाद जल और अक्षत के साथ वृक्ष की जड़ से सींचना चाहिए।
शमी पूजा के कई महत्वपूर्ण मंत्र भी हैं जिनका उच्चारण किया जाता है। इन मंत्रों में भी अमंगलों और दुष्कृत्य का शमन करने, दुस्वप्नों का नाश करने वाली, धन देने वाली, शुभ करने वाली शमी के प्रति पूजा अर्पित करने की बात कही गई है। कहते हैं कि लंका पर विजय पाने के बाद राम ने भी शमी पूजन किया था। शमी के पेड़ की पूजा का महत्व महाभारत के संदर्भ से पता चलता है कि पांडवों ने देश निकाला के अंतिम वर्ष में अपने हथियार शमी के वृक्ष में ही छिपाए थे। संभवतः इन्हीं दो कारणों से शमी पूजन की परंपरा प्रारंभ हुई होगी।
शमी वृक्ष तेजस्विता एवं दृढ़ता का प्रतीक भी माना गया है, जिसमें अग्नि तत्व की प्रचुरता होती है। इसी कारण यज्ञ में अग्नि प्रकट करने हेतु शमी की लकड़ी के उपकरण बनाए जाते हैं।
शमी मंत्र अमङ्गलानां च शमनीं शमनीं दुष्कृतस्य च । दु:स्वप्रनाशिनीं धन्यां प्रपद्येहं शमीं शुभाम् ।।
शमी शमयते पापं शमी लोहितकण्टका । धारिण्यर्जुनबाणानां रामस्य प्रियवादिनी ।।
करिष्यमाणयात्रायां यथाकाल सुखं मया । तत्रनिर्विघ्नकर्त्रीत्वंभवश्रीरामपूजिते ।।
दशहरा के दिन शमी पूजा का महत्व बहुत अधिक है। यह विजयदाशमी दिवस पर किए जाने वाले महत्वपूर्ण अनुष्ठानों में से एक है। हिन्दू परंपराओं में दशहरा पर शमी पूजन का पौराणिक महत्व रहा है।
परंपरागत रूप से शमी पूजा क्षत्रिय और राजाओं द्वारा की जाती थी। आज भी यह परंपरा कायम है। ऐसी मान्यता है कि इस पूजन से सारी धन संबंधी समस्याएं दूर होती है। लेकिन किसी भी शामी पेड़ जो शहर या शहर के उत्तर-पूर्व में स्थित है, उसकी पूजा की जा सकती है।
शमी पेड़ को कुछ क्षेत्रों में छोंकर पेड़ भी कहा जाता है। यदि शमी का पेड़ नहीं मिले तो पूजा के लिए अशमंतक (अभमन्तक) पेड़ का उपयोग किया जा सकता है। अशमंतक पेड़ को बाहेडा पेड़ भी कहा जाता है। भारत में कुछ दक्षिणी राज्यों में शमी पूजा को बनी पूजा और जमी पूजा भी कहा जाता है।
श्रद्धालु दशहरा की शाम को शमी वृक्ष का पूजन कर उससे आशीर्वाद प्राप्त करते है। इस परंपरा के पीछे शमी वृक्ष का महत्व छुपा है। दशहरे के दिन शमी वृक्ष की पूजा करने के बाद जल और अक्षत के साथ वृक्ष की जड़ से सींचना चाहिए।
शमी पूजा के कई महत्वपूर्ण मंत्र भी हैं जिनका उच्चारण किया जाता है। इन मंत्रों में भी अमंगलों और दुष्कृत्य का शमन करने, दुस्वप्नों का नाश करने वाली, धन देने वाली, शुभ करने वाली शमी के प्रति पूजा अर्पित करने की बात कही गई है। कहते हैं कि लंका पर विजय पाने के बाद राम ने भी शमी पूजन किया था।
शमी के पेड़ की पूजा का महत्व
महाभारत के संदर्भ से पता चलता है कि पांडवों ने देश निकाला के अंतिम वर्ष में अपने हथियार शमी के वृक्ष में ही छिपाए थे। संभवतः इन्हीं दो कारणों से शमी पूजन की परंपरा प्रारंभ हुई होगी।
शमी वृक्ष तेजस्विता एवं दृढ़ता का प्रतीक भी माना गया है, जिसमें अग्नि तत्व की प्रचुरता होती है। इसी कारण यज्ञ में अग्नि प्रकट करने हेतु शमी की लकड़ी के उपकरण बनाए जाते हैं।
शमी मंत्र
अमङ्गलानां च शमनीं शमनीं दुष्कृतस्य च ।
दु:स्वप्रनाशिनीं धन्यां प्रपद्येहं शमीं शुभाम् ।।
शमी शमयते पापं शमी लोहितकण्टका । धारिण्यर्जुनबाणानां रामस्य प्रियवादिनी ।।
करिष्यमाणयात्रायां यथाकाल सुखं मया । तत्रनिर्विघ्नकर्त्रीत्वंभवश्रीरामपूजिते ।।